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Wednesday, July 11, 2012

अनुक्रम से अनुभव


ज्ञानगोचर वस्तुओं का जीने में ही परीक्षण होता है।  इन्द्रियगोचर सभी वस्तुएं प्रयोग में आ जाते हैं।  प्रयोग सभी यांत्रिक है, जीना प्रयोग नहीं है। प्रयोग सामयिक होते हैं, जीना निरंतर होता है।  इन्द्रियगोचर जो है, उसका कुछ भाग जीने से जुड़ता है।

सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान - यह ज्ञानगोचर है।  जीवन का स्वरूप ज्ञान - यह ज्ञानगोचर है।  मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान - यह ज्ञानगोचर है।  इन तीनो ज्ञान को जब हम व्यवहार में लाते हैं तो अनुभव का प्रमाण मिलता है।

एक से एक जुड़ करके "होने" के स्वरूप का नाम है अनुक्रम।  विकासक्रम-विकास, जागृतिक्रम-जागृति, और सह-अस्तित्व - ये तीन मुद्दे अनुक्रम हैं।  ये मुद्दे ज्ञानगोचर हैं - जो एक दूसरे से जुड़े हैं।  अनुक्रम से अनुभव होता है।  अनुभव शाश्वत होने के स्वरूप में है।

- श्री नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी 2007, अमरकंटक) 

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