"मैंने जो साधना, अभ्यास, समाधि और संयम विधि से जो अस्तित्व में अनुभव किया उससे पुनर्विचार के लिए एक रास्ता निकला. वह रास्ता है - सर्वमानव के पास जो कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता स्वत्व के रूप में है, उसके तृप्ति-बिंदु को पहचाना जाए, फिर धरती बीमार होने और व्यापार शोषण-ग्रस्त होने का क्या उपचार हो सकता है, यह सोचा जा सकता है। जब तक कल्पनाशीलता और कर्म-स्वतंत्रता के तृप्ति-बिंदु को हम नहीं पहचानते, तब तक इस उपचार को लेकर पहल नहीं किया जा सकता।"
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त 2006, अमरकंटक)
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