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Monday, July 2, 2012

संवेदना और मूल्य



"मानव ने आदि काल से अभी तक संवेदनाओं की पहचान को ही भाव या मूल्य माना है। संवेदना की पहचान के साथ ही भाषा, भंगिमा, मुद्रा, अंगहार को देखा गया।  संवेदनाओं की पहचान पूर्वक जो सम्प्रेष्णा होती है, (जीव चेतना में हम) उसी के साथ उत्तर देने लग जाते हैं।  शरीर संवेदनाओं के आधार पर मानव का तृप्ति पाना संभव नहीं हुआ - आदिकाल से अब तक। 


 यहाँ (मध्यस्थ दर्शन में) संवेदनाओं की पहचान को मूल्य (भाव) नहीं माना गया।  मूल्य को अलग से (जीवन में) पहचाना।  सह-अस्तित्व में अनुभव पूर्वक तृप्ति पाने के बाद यह सत्यापित करना बना कि मानव के साथ स्थापित मूल्य हैं - कृतज्ञता, गौरव, श्रद्धा, विश्वास, वात्सल्य, ममता, सम्मान, प्रेम, और स्नेह।"

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी 2007, अमरकंटक)


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