ज्ञानगोचर सभी वस्तु पहचानने में आ जाए और प्रमाणित हो जाए - इसका नाम है अध्ययन. अनुभव की रोशनी में, स्मरण पूर्वक किये गए प्रयास को अध्ययन कहा. अनुभव शाश्वत रूप में प्रमाण है. ज्ञानगोचर वस्तु को पूरा समझना, उसकी उपयोगिता को पूरा अभिव्यक्त, संप्रेषित और प्रकाशित कर पाना - यह अनुभव-बल के आधार पर ही होता है. दूसरा कोई विधि से यह होगा नहीं. इसीलिये अनुभव तक पहुँचने के लिए, हर अध्ययन करने वाले व्यक्ति को इन्द्रियगोचर वस्तु और ज्ञानगोचर वस्तु पहचानने की आवश्यकता है. अभी तक के हज़ारों वर्ष के मानव इतिहास में इन्द्रियगोचर वस्तुओं को पहचानने की व्यवस्था दिया. अब हम कह रहे हैं - इस धरती पर मानवों को अगले कुछ दशकों में ज्ञानगोचर वस्तुओं को पहचानने योग्य होना चाहिए, क्योंकि धरती बीमार हो गयी है, धरती के साथ अपराध कृत्यों से मुक्ति पाने की आवश्यकता है. उसी के साथ अपने-पराये की दीवारों से भी मुक्ति पाना है. इसका नाम दिया - "भ्रम मुक्ति". भ्रम मुक्ति ही मोक्ष है।
- श्री नागराज के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी 2007, अमरकंटक)
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