प्रश्न: आपको अनुभव संयम-काल के पहले हुआ, बाद में हुआ, या संयम-काल में हुआ?
उत्तर: मुझे पाँच वर्ष के संयम-काल में अध्ययन-पूर्वक अनुभव हुआ। हर पक्ष का साक्षात्कार, बोध हो कर अनुभव होता रहा। चारों अवस्थाओं का अनुभव होने में समय लगता है। सह-अस्तित्व में ही विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, और जागृति अनुभव हुआ। विकास-क्रम का अनुभव होने में सबसे अधिक समय लगा, उससे कम विकास में, उससे कम जागृति-क्रम में, उससे कम जागृति में। अनुभव करने में समय आपको भी लगेगा। जिस तरह मैंने मन लगाया वैसे आप मन लगाएं तो आपको उससे कम समय में अनुभव होगा। अनुभव के लिए अध्ययन में मन लगना आवश्यक है।
पूरी बात को अनुभव करने के बाद मैंने स्वीकारा यह मेरे अकेले का स्वत्व नहीं है, सम्पूर्ण मानव-जाति का स्वत्व है।
आपको भी “विकास-क्रम” और “विकास” को समझने के क्रम में सह-अस्तित्व अनुभव होगा, तथा “जागृति-क्रम” और “जागृति” को समझने के क्रम में मानव का ज्ञान-अवस्था में होना और यह ज्ञान मानव का स्वत्व होना अनुभव होगा।
अध्ययन के लिए मन लगाना पड़ता है। अनुभव के बाद मन लगा ही रहता है।
प्रश्न: क्या आपने भी संयम-काल में अध्ययन के लिए मन लगाया था?
उत्तर: हाँ। मन लगाए बिना संयम हो ही नहीं सकता।
प्रश्न: हम जिस विधि से अध्ययन कर रहे हैं, उसको आप आपकी विधि से अधिक सुगम क्यों कहते है?
उत्तर: - आप अध्ययन विधि से निष्कर्ष निकाल सकते हैं। निष्कर्ष निकालने के बाद अनुभव करना बहुत सरल है. मेरे पास कोई निष्कर्ष नहीं थे।
मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन से निष्कर्ष तो निकलते हैं। यह तो अनेक व्यक्तियों ने सत्यापित कर दिया है। निष्कर्ष निकाल लेने को “अंतिम-बात” न माना जाए। अनुभव को ही अंतिम-बात माना जाए। निष्कर्षों को अंतिम-बात मान लेते हैं तो भाषा में लग जाते हैं। अनुभव को अंतिम-बात मानते हैं तो प्रमाण में लग जाते हैं। इतना ही सूक्ष्म-परिवर्तन है।
प्रश्न: क्या अनुभव ही क्रिया-पूर्णता है?
उत्तर: अनुभव के जीने में प्रमाणित होने पर क्रिया-पूर्णता है। प्रमाणित होने का स्वरूप भी मैंने प्रस्तुत कर दिया है। विकसित-चेतना का अनुभव होता है। अनुभव में समझ का पूंजी पूरा रहता है। उसके बाद जीने में शुरुआत मानव-चेतना से है, फिर देव-चेतना, और दिव्य-चेतना है।
प्रश्न: क्या अध्ययन के लिए जो आपने वांग्मय लिखा है, वह पर्याप्त है?
उत्तर: - मेरे अनुसार सारी बात वांग्मय में आ चुकी है। कुछ बचा होगा तो आप बताना। लिखा हुआ जो है वह केवल सूचना है, उसको समझाने का काम अनुभव-मूलक व्यक्ति ही करेगा।
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)
उत्तर: मुझे पाँच वर्ष के संयम-काल में अध्ययन-पूर्वक अनुभव हुआ। हर पक्ष का साक्षात्कार, बोध हो कर अनुभव होता रहा। चारों अवस्थाओं का अनुभव होने में समय लगता है। सह-अस्तित्व में ही विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, और जागृति अनुभव हुआ। विकास-क्रम का अनुभव होने में सबसे अधिक समय लगा, उससे कम विकास में, उससे कम जागृति-क्रम में, उससे कम जागृति में। अनुभव करने में समय आपको भी लगेगा। जिस तरह मैंने मन लगाया वैसे आप मन लगाएं तो आपको उससे कम समय में अनुभव होगा। अनुभव के लिए अध्ययन में मन लगना आवश्यक है।
पूरी बात को अनुभव करने के बाद मैंने स्वीकारा यह मेरे अकेले का स्वत्व नहीं है, सम्पूर्ण मानव-जाति का स्वत्व है।
आपको भी “विकास-क्रम” और “विकास” को समझने के क्रम में सह-अस्तित्व अनुभव होगा, तथा “जागृति-क्रम” और “जागृति” को समझने के क्रम में मानव का ज्ञान-अवस्था में होना और यह ज्ञान मानव का स्वत्व होना अनुभव होगा।
अध्ययन के लिए मन लगाना पड़ता है। अनुभव के बाद मन लगा ही रहता है।
प्रश्न: क्या आपने भी संयम-काल में अध्ययन के लिए मन लगाया था?
उत्तर: हाँ। मन लगाए बिना संयम हो ही नहीं सकता।
प्रश्न: हम जिस विधि से अध्ययन कर रहे हैं, उसको आप आपकी विधि से अधिक सुगम क्यों कहते है?
उत्तर: - आप अध्ययन विधि से निष्कर्ष निकाल सकते हैं। निष्कर्ष निकालने के बाद अनुभव करना बहुत सरल है. मेरे पास कोई निष्कर्ष नहीं थे।
मध्यस्थ दर्शन के अध्ययन से निष्कर्ष तो निकलते हैं। यह तो अनेक व्यक्तियों ने सत्यापित कर दिया है। निष्कर्ष निकाल लेने को “अंतिम-बात” न माना जाए। अनुभव को ही अंतिम-बात माना जाए। निष्कर्षों को अंतिम-बात मान लेते हैं तो भाषा में लग जाते हैं। अनुभव को अंतिम-बात मानते हैं तो प्रमाण में लग जाते हैं। इतना ही सूक्ष्म-परिवर्तन है।
प्रश्न: क्या अनुभव ही क्रिया-पूर्णता है?
उत्तर: अनुभव के जीने में प्रमाणित होने पर क्रिया-पूर्णता है। प्रमाणित होने का स्वरूप भी मैंने प्रस्तुत कर दिया है। विकसित-चेतना का अनुभव होता है। अनुभव में समझ का पूंजी पूरा रहता है। उसके बाद जीने में शुरुआत मानव-चेतना से है, फिर देव-चेतना, और दिव्य-चेतना है।
प्रश्न: क्या अध्ययन के लिए जो आपने वांग्मय लिखा है, वह पर्याप्त है?
उत्तर: - मेरे अनुसार सारी बात वांग्मय में आ चुकी है। कुछ बचा होगा तो आप बताना। लिखा हुआ जो है वह केवल सूचना है, उसको समझाने का काम अनुभव-मूलक व्यक्ति ही करेगा।
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)