This blog is for Study of Madhyasth Darshan (Jeevan Vidya) propounded by Shree A. Nagraj, Amarkantak. (श्री ए. नागराज द्वारा प्रतिपादित मध्यस्थ-दर्शन सह-अस्तित्व-वाद के अध्ययन के लिए)
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Wednesday, October 19, 2011
इकाई
"जो नियंत्रित है वह इकाई है, यही स्वभाव गति क्रिया है। गठन रहित संतुलित इकाई नहीं है। हर गठन में कई अंशों या अंगों एवं इकाइयों को पाया जाना अनिवार्य है। क्रियाएँ अनंत हैं तथा समस्त क्रियाएँ सत्ता में ही ओत-प्रोत व नियंत्रित हैं, जिससे हर इकाई शक्त है अर्थात सत्ता में ही हर इकाई को शक्ति प्राप्त है। हर इकाई अनंत की तुलना में एक अंश ही है। हर इकाई का गठन अनेक अंशों से संपन्न है। इकाई निष्क्रिय हो ऐसी कोई सम्भावना नहीं है। इकाई का ह्रास व विकास प्राप्य योग पर ही है। इकाई में कंपन क्रिया का बढ़ जाना ही विकास की घटना है, तथा इसके विपरीत में ह्रास की घटना है। चैतन्य इकाई में कंपन की अधिकता ही विशेषता है। अध्ययन से हर इकाई की गठन प्रक्रिया एवं उसका परिणाम स्पष्ट होता है। प्रत्येक इकाई का सर्वांगीण दर्शन उसके रूप, गुण, स्वभाव व धर्म से होता है। इनमे से रूप, गुण और स्वभाव समझ में आता है और धर्म की मात्र अनुभूति ही संभव है, जो अनुभव प्राप्त इकाई द्वारा एक प्रक्रियाबद्ध अनुभव के सम्भावना पूर्ण आदेश, सन्देश, एवं निर्देश व अध्ययन से ही संभव है।" - मानव व्यवहार दर्शन (श्री ए. नागराज)
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