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Tuesday, October 25, 2011

अनुभव प्रमाण की आवश्यकता

मैं उस दिन तृप्त हो जाऊँगा जिस दिन मुझको पता चलेगा कि दस-बीस आदमी प्रमाणित हो गए। मुझको इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। यही चाहिए! उसी के लिए मेरा सारा प्रयास है, मेरी सारी सोच उसी के लिए है, मेरा जीना उसी के लिए है।

प्रश्न: मैं सोचता हूँ, अनुभव तक हम यदि नहीं पहुँचते हैं तो क्या करेंगे?

उत्तर: “नहीं पहुंचेंगे” को क्यों सोचते हो? “कैसे पहुंचें?” – उसको सोचो! नहीं पहुँचने पर तो वही अपराध-परंपरा में रहेंगे। अभी इस धरती को छोड़ करके इस सौर-व्यूह में और कोई गृह नहीं है जहां “मानव” बन कर जी पाए। अभी तक इस धरती पर भी मनुष्य पशु-मानव और राक्षस-मानव के स्वरूप में ही रहा है। यदि मंगल-गृह पर भी जा कर रहने लगते हैं तो भी पशु-मानव राक्षस-मानव बन कर ही रहेंगे।

पशु-मानव और राक्षस-मानव की लड़ाइयों की ही गाथाएं हैं, हमारे इतिहास में। रहस्यमय देवी-देवताओं के गाने गाये, उनको “विशेष” मान कर उनकी भाटगिरी को ही विद्वता माने हैं। जबकि हमारी विधि से मानव ही समझदारी पूर्वक देवता स्वरूप में होता है।

- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)

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