व्यापक-वस्तु बिंदु के रूप में अनुभव है, सिंधु के रूप में अभिव्यक्ति है। ज्ञान सत्ता का ही प्रतिरूप माना। जैसे सत्ता कहीं रुकता नहीं है, वैसे ज्ञान भी कहीं रुकता नहीं है। ज्ञान पारगामी है. जैसे ज्ञान मुझे स्वीकार होता है, आपको भी स्वीकार हो जाता है – तो ज्ञान पारगामी हुआ कि नहीं? यदि ऐसा ज्ञान ७०० करोड लोगों के बीच पारगामी होता है तो अखंड-समाज नहीं होगा तो और क्या होगा? सर्वाधिक लोग यदि समझदार होते हैं, तो अखंड-समाज होगा या नहीं होगा?
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)
3 comments:
आपको, परिजनों, व मित्रों को दीपावली की शुभकामनायें!
धन्यवाद, दीवाली की बधाई आपको और परिवार-जनों को भी! राकेश.
"... तो ज्ञान पारगामी हुआ कि नहीं? यदि ऐसा ज्ञान ७०० करोड लोगों के बीच पारगामी होता है तो अखंड-समाज नहीं होगा तो और क्या होगा? सर्वाधिक लोग यदि समझदार होते हैं, तो अखंड-समाज होगा या नहीं होगा?"
Beautiful line.
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