परमाणु व्यवस्था का मूल रूप है. कम से कम दो परमाणु-अंश मिल करके एक परमाणु को बनाते हैं. उसी तरह अनेक अंशों से मिल कर बने हुए भी परमाणु होते हैं. सभी परमाणु त्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करते हैं. समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने का स्वरूप है – पूरकता और उपयोगिता. मानव कहाँ तक पूरक हुआ, उपयोगी हुआ – इसका स्वयं में परिशीलन करने की आवश्यकता है. परमाणु गठन-पूर्ण होने पर जीवन कहलाता है. उससे पहले गठन-शील परमाणु हैं. गठन-शील परमाणुओं में रासायनिक-भौतिक क्रियाएँ ही होते हैं. जीवन क्रिया गठन-पूर्ण परमाणु से ही होता है, और दूसरे परमाणुओं से होता नहीं है. भौतिक-क्रिया, रासायनिक क्रिया, और जीवन क्रिया – ये तीन प्रकार की क्रियाएँ है, जो चार अवस्थाओं के रूप में प्रकाशित हैं. जीवन क्रिया से ही ज्ञान का अभिव्यक्ति होती है. ज्ञान की अभिव्यक्ति को ही चेतना कहा है. चेतना के चार स्तर हैं – जीव-चेतना, मानव-चेतना, देव-चेतना, और दिव्य-चेतना. इनमे श्रेष्ठता का क्रम है – जीव-चेतना से मानव-चेतना श्रेष्ठ है, मानव-चेतना से देव-चेतना श्रेष्ठतर है, देव-चेतना से दिव्य-चेतना श्रेष्ठतम है. चेतना-विकास के अर्थ में ही मध्यस्थ-दर्शन लिखा है.
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)
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