जीवन में बुद्धि और आत्मा कारण-क्रियाएँ हैं। जीवन में मन, वृत्ति, और चित्त सूक्ष्म-क्रियाएँ हैं. शरीर स्थूल-क्रिया है. सूक्ष्म क्रियाएँ सम-विषमात्मक हैं – जो condition के साथ में हैं। कारण क्रियाएँ बिना condition के हैं। सूक्ष्म क्रिया से कारण क्रिया के लिए पहला जो खेप है – वह है बुद्धि में (अवधारणा) बोध होना। बुद्धि में (अवधारणा) बोध हुए बिना आत्मा में अनुभव होता ही नहीं है। यही मुख्य बात है। बुद्धि में (अवधारणा) बोध होने के लिए स्त्रोत हैं – आशा, विचार और इच्छा। इन तीनो के आधार पर ही मानव ४.५ क्रिया में जीता है। ४.५ क्रियाएँ (अवधारणा) बोध के लिए स्त्रोत हैं, न कि ये स्वतन्त्र रहने के लिए हैं। अभी मानव इनके स्वतन्त्र रहने के लिए चल रहा है। यही लाभोन्माद, भोगोन्माद, और कामोन्माद है। सूक्ष्म क्रियाएँ (मन, वृत्ति, और चित्त) कारण-क्रियाओं के लिए स्त्रोत हैं। इन्ही के द्वारा बुद्धि में (अवधारणा) बोध होता है। (अवधारणा) बोध होने पर अनुभव स्वतः होता है। अनुभव के लिए आपको अलग से कुछ नहीं करना है। (अवधारणा) बोध तक ही पुरुषार्थ है।
सूक्ष्म क्रियाओं को संकेत मिलता है, शरीर से। बुद्धि (कारण क्रिया) को संकेत मिलता है, सूक्ष्म क्रियाओं से। बुद्धि को संकेत मिलने से आत्मा में अनुभव होता है। सिंधु से बिंदु तक पहुँचने का काम यही है। आशा, विचार, और इच्छा (कल्पनाशीलता) ही बोध के लिए स्त्रोत है। आशा के बिना हम किसी की बात सुनेंगे ही नहीं। सुनेंगे नहीं तो वह विचार में आएगा ही नहीं। विचार में नहीं आएगा तो चित्त में उसका चित्रण बन नहीं पायेगा। चित्त में सच्चाई का चित्रण संवेदनशीलता पूर्वक तदाकार-तद्रूप विधि से होता है। इस तरह तदाकार होने पर सच्चाई का बोध होता है। शरीर से सम्बंधित जो भाग है वह चित्रण तक ही रह जाता है।
प्रश्न: आशा, विचार, और इच्छा सच्चाई के लिए स्त्रोत हो सकता है, यह विगत से बिलकुल अलग बात लगती है?
वह तो स्वाभाविक है। विगत (आदर्शवाद और भौतिकवाद) में तो केवल भाड़ झोंकने वाली बात ही है। भाड़ झोंकने का मतलब है – शिकायत पैदा करना, समस्या पैदा करना, और दुःख पैदा करना।
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)
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