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Thursday, October 13, 2011

अंतिम बात समझ में आना चाहिए




व्यापक क्या है? इसके उत्तर में कहा – “ब्रह्म ब्रह्म में व्यापक है, सोना सोने में व्यापक है, लोहा लोहे में व्यापक है।” यह किसी को स्पष्ट नहीं हुआ. समझ में आता ही नहीं है – वह है वेदान्त। मेरे वेदान्त पर इस तरह प्रश्न करने से ही मेरे मामा परेशान हुए। मेरा मेरे मामा के साथ बहुत लगाव था। तभी तो हम इस तरह अंतिम बात कह पाए, अंतिम बात सोच पाए, अंतिम बात के लिए जिज्ञासु हो पाए। “अंतिम बात समझ में आना चाहिए” - इसमें मेरे मामा भी सहमत रहे और मैं भी सहमत रहा। यहाँ तक मेरे मामा साथ रहे। फिर अज्ञात को ज्ञात करने के लिए जिज्ञासा को पूरा करने के लिए एक ही विधि है – समाधि। उसमे मुझे बीस वर्ष लगे। उसके बाद संयम में पाँच वर्ष लगे। यह तो बात सही है – समाधि के बिना संयम होता नहीं है। उसी तरह अध्ययन-विधि में अनुभव किये बिना संवेदनाओं पर नियंत्रण नहीं हो सकता।

प्रश्न: अनुसंधान क्या समाधि-संयम विधि से ही हो सकता है?

उत्तर: समाधि-संयम विधि से ही अनुसंधान हो सकता है। समाधि में कुछ नहीं होगा। समाधि में आशा-विचार-इच्छाएं चुप होते हैं। समाधि के बाद संयम पूर्वक ही अनुसन्धान होता है।

प्रश्न: भौतिकवादी विधि से क्या अनुसंधान नहीं हो सकता?

उत्तर: भौतिकवादी विधि से तो कुछ भी नहीं मिल सकता. भौतिकवादी विधि से वितृष्णाएं ही मिलते हैं।

प्रश्न: तो क्या आदर्शवाद भौतिकवाद से आगे की सोच पाया?

उत्तर: आदर्शवाद भौतिकवाद से बहुत आगे की सोच पाया। इसमें कोई शंका नहीं है।

- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०११, अमरकंटक)

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