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Sunday, March 15, 2009

प्रचलित विज्ञान की समीक्षा

रूप, गुण, स्व-भाव, और धर्म का विखंडन नहीं किया जा सकता। रूप, गुण, स्व-भाव और धर्म अविभाज्य हैं।

प्रचिलित विज्ञानियों का हठ है - रूप और गुण (empirically observable aspects) को मानेंगे, स्व-भाव और धर्म को नहीं मानेंगे! स्व-भाव (मौलिकता या सह-अस्तित्व में प्रयोजन) कुछ होता है, धर्म कुछ होता है - यह प्रचलित-विज्ञान नहीं मानता। यह सोच ही विखंडन-वादी (reductionism) है।

स्थिति और गति अविभाज्य हैस्थिति से आशय है - "होना"। गति से आशय है - "प्रकटन"। प्रचलित-विज्ञानं गति को तो मानता है, स्थिति ("होना") को नहीं मानताइकाई का होना (या उसकी स्थिति) उसके स्व-भाव और धर्म द्वारा इंगित हैइकाई का परस्परता में प्रकटन (या उसकी गति) उसके रूप और गुण द्वारा इंगित होती है

प्रश्न: विज्ञानी ऐसा तो नहीं कहते कि धर्म और स्व-भाव को नहीं मानेंगे...

उत्तर: वे जो भी कहते हों, यह मेरे अनुभव की रोशनी में प्रचलित-विज्ञान का समीक्षा है। विज्ञान-भाषा व्यापार-भाषा में ही जुड़ती है। विज्ञान application में engineering और medicine के रूप में आता है। इन दोनों के कार्यक्रमों में विखंडन-वादी सोच साफ़ दिखती है। दोनों व्यापार के लिए समर्पित हैं। बिना टुकडा किए (विखंडन किए) व्यापार होता नहीं है। व्यापार धोखाधड़ी से छुटा नहीं है। व्यापार न्याय से जुड़ता नहीं है।

प्रचलित-विज्ञान की यही सोच उसे ज्ञान-व्यापार की तरफ़ ले गयी। Intellectual Property Right महान अपराध है।

प्रचलित-विज्ञान ने parts to whole को सोचा। parts को जोड़ कर whole बना सकते हैं - यह सोचा। parts को artificially बना सकते हैं - यह सोचा। इस सोच से सार्थक जो निकला वह है - दूर-संचार। अधिकाँश रूप में विखंडन-वादी सोच से विनाश ही हुआ।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
[१] Scientific Method
[२] प्रचलित विज्ञानं का ज्ञान पक्ष ग़लत है, तकनीकी पक्ष सही है

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