"पृथ्वी गंधवती है" - वैदिक-विचार में भी इस बात को कहा है।
सुगंध और दुर्गन्ध दोनों प्राण-अवस्था से स्पष्ट हुई। जीवों में गंध के आधार पर अपने आहार को पहचानने की विधि बनी। मनुष्य ने "रुचि" के आधार पर अपने आहार को पहचाना। मनुष्य और जीव में आहार की पहचान में यही मौलिक फर्क है।
ज्ञानी और विज्ञानी दोनों मिल कर मानव का आहार (शाकाहार या मांसाहार) तय नहीं कर पाये अभी तक! आचरण तो दूर की बात है!
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
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