देखने का मतलब है - समझना। समझ में आता है - तभी देखा, नहीं तो क्या देखा? यदि आप कोई वस्तु को देखते हैं, और वह आप को समझ में नहीं आता है - तो आपने उसको देखा है, उसका क्या प्रमाण है?
देखा है, पर समझा नहीं है - उसी जगह में सकल अपराध होते हैं।
समझा नहीं है, पर अपने को समझा हुआ मान लिया है - उसी जगह में सारे गलतियाँ/अपराध होते हैं।
नासमझी ही गलती और अपराध का आधार है।
जैसे - आप अपने भाई को देखते हो, लेकिन भाई के साथ अपने सम्बन्ध को नहीं समझते हो - तो उस सम्बन्ध में आप से गलती/अपराध होना संभावित है। सम्बन्ध में जो मूल्य निर्वाह होना चाहिए - वह नहीं हो पाना ही सम्बन्ध में गलती/अपराध करना है।
उसी तरह अस्तित्व अपने में एक व्यवस्था है। यह व्यवस्था हमें समझ में नहीं आता है - तो हम गलती और अपराध के अलावा क्या करेंगे? गलती करते हैं, फ़िर उस गलती को दूसरी गलती से रोकने का प्रयास करते हैं। अपराध करते हैं, फ़िर उस अपराध को दूसरे अपराध से रोकने का प्रयास करते हैं। जब तक हम अस्तित्व की व्यवस्था को नहीं समझते तब तक हम गलती और अपराध के अलावा और कुछ कर ही नहीं सकते।
मनुष्य अस्तित्व में व्यवस्था को समझने के बाद ही स्वयं व्यवस्था में जीने को प्रमाणित कर सकता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा से संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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