धीरज से, पूरा विश्लेषण से, पूरा सार्थकता की चोटी से बाँध करके अपना हर कदम रखा जाए. उसी में यह धैर्य पूरा होगा. आतुरता करते हैं तो वह "प्रयोग" होगा. आतुरता नहीं करते हैं तो "पद्दति" होगा. अब आगे की ज़िन्दगी में हमे प्रयोग में नहीं उतरना है, पद्दति पर चलना है. हर व्यक्ति शोध पूर्वक पद्दति को अपनाएगा.
जो है, उसका स्वीकृति होना - यह पहला पद्दति है. अस्तित्व में सम्पूर्ण वस्तुएं चार अवस्थाओं में हैं, यह स्वीकृति होना - पद्दति का पूरा आधार इतना ही है.
सहअस्तित्व में विकासक्रम एक पद्दति है, विकास एक पद्दति है, जागृतिक्रम एक पद्दति है, जागृति एक पद्दति है.
जागृति की रौशनी में हम सार्थकता को पहचानते हैं. तर्क की रोशनी में हम जागृति-क्रम को पहचानते हैं. विकास-क्रम को हम कल्पना और कारण-गुण-गणित से पहचानते हैं. विकास को हम जीवन स्वरूप में पहचानते हैं.
सम्बन्ध पद्दति है. प्रकटन प्रणाली है. पदार्थावस्था से ज्ञानावस्था तक का प्रकटन प्रणाली है. पद्दति भी बना रहना है, प्रणाली भी बना रहना है - तभी मानव समाधान को प्राप्त करता है.
मानव ज्ञानावस्था की इकाई है. मानव के पीछे की तीनो अवस्थाओं का प्रकटन शुभ के अर्थ में होने पर मानव का अवतरण हुआ है. मानव के शुभ के अर्थ में जीने की आवश्यकता बनी है. उसके लिए मानव को पदार्थावस्था, प्राणावस्था और जीवावस्था के साथ नियम, नियत्रण प्रणाली को पहचानना होगा और पद्दति को जीना होगा. पद्दति है - समाधान पूर्वक जीना, फिर समाधान-समृद्धि पूर्वक जीना, फिर समाधान-समृद्धि-अभय पूर्वक जीना, फिर समाधान-समृद्धि-अभय-सहअस्तित्व पूर्वक जीना.
- श्रद्देय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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