स्थिति-गति स्वरूप में ही सारी वस्तुएं हैं. हर वस्तु स्थिति के साथ गति है.
स्थिति वस्तु के स्वयं में 'होने' के प्रति प्रतिबद्धता है.
'होने' के रूप में स्थिति है, 'रहने' के रूप में गति है.
स्थिति गठन है, जो स्थिर है, होने का प्रमाण है. गठन ही स्थिति क्रिया है.
गति को आचरण (व्यवस्था में भागीदारी), स्थानान्तरण और परिवर्तन के रूप में पहचाना.
जैसे - दो परमाणु अंशों के परमाणु की एक स्थिति है. यह स्थिति होते हुए उसमे घूर्णन, वर्तुल और कम्पन गति है. इसके आचरण का परिशीलन करने गए तो उसमे स्थानान्तरण भी है और परिवर्तन भी है.
विज्ञानी ने स्थिति को नहीं पहचाना, गति को पहचाना. स्थिति के बिना गति को पहचानने गए तो उसे अस्थिर और अनिश्चित बता दिया.
जबकि सम्पूर्ण अस्तित्व स्थिति-गति स्वरूप में नित्य वर्तमान है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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