जीवन (चैतन्य प्रकृति) अपने स्वरूप में एक गठनपूर्ण परमाणु है. गठनपूर्ण परमाणु अस्तित्व में है. गठनपूर्ण परमाणु का नाम ही जीवन है. जीवन में १० क्रियाएं होती हैं. इनमे से जीव-संसार में वंश अनुरूप जीने के स्वरूप में मन की आशा व्यक्त हुई. इससे ज्यादा नहीं. जीव-संसार जीने की आशा को चार विषयों के क्रियाकलाप स्वरूप में व्यक्त करता है. हर जीव का विषय क्रियाकलाप उसके वंश के अनुरूप है. गाय का तरीका अलग है, बाघ का अलग है, भालू का अलग है.
मानव जब प्रकट हुआ तो पहले चार विषयों से ही शुरू किया. इसका आधार रहा मानव द्वारा जीवों का अनुकरण. मानव अपनी कल्पनाशीलता और कर्मस्वतंत्रता के चलते जीव-संसार का अनुकरण करने लगा. अनुकरण करने की प्रवृत्ति मनुष्य के पास है. यह बात अभी भी बचपन में देखी जाती है. तब से आज चलते-चलते मानव इस जगह पहुँच गया है कि वह अध्ययन पूर्वक जीवन को समझ सकता है. इसको प्रस्ताव रूप में यहाँ (मध्यस्थ दर्शन में) प्रस्तुत किये हैं.
अभी तक परम्परा में "जीवन" का ज़िक्र नहीं था, "जीव" का ज़िक्र था. "जीव" को लेकर यही माना जाता था जैसे अनेक प्रकार के वंश में जीव-संसार है वैसा ही मानव भी है. किन्तु ऋषि-मह्रिषियों ने बताया - यह ठीक नहीं है, ज्ञान होना चाहिए! ज्ञान कहाँ है? - यह पूछने पर कहा कि तुम समझ नहीं सकते हो, ज्ञान अव्यक्त और अनिर्वचनीय है. ज्ञान का परम्परा में ज़िक्र तो बहुत हुआ (थोडा ज्यादा ही हुआ!) किन्तु ज्ञान को अध्ययन कराने में वे सर्वथा असफल रहे. इसीलिये उसका परंपरा नहीं हुआ. इसकी गवाही यही है. अब यहाँ पूरा ज्ञान अध्ययन कराने के लिए प्रस्तावित कर दिया. ज्ञान का चौखट तीन स्तंभों में दिया - (१) अस्तित्व दर्शन ज्ञान (२) जीवन ज्ञान (३) मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान. उसमे से अभी यहाँ जीवन ज्ञान की बात हम कर रहे हैं.
प्रश्न: जीवन को अध्ययन करने का विधि जीवन में कैसे समाया है?
उत्तर: दृष्टा विधि और अनुभव विधि के योग में यह रखा है. भौतिक-रासायनिक संसार और मानव शरीर का दृष्टा 'मन' है. मन का दृष्टा वृत्ति है. विचार शक्तियाँ मन को विश्लेषित करती हैं. वृत्ति का दृष्टा चित्त है. इच्छा के अनुरूप विश्लेषण हुआ या नहीं इसको चित्त बताता है. चित्त का दृष्टा बुद्धि है. अनुभव प्रमाण के अनुसार इच्छाएं हुई या नहीं - इसका दृष्टा बुद्धि है. बुद्धि का दृष्टा आत्मा है. अनुभव के अनुरूप बुद्धि में बोध पहुंचा या नहीं पहुंचा - इसका दृष्टा आत्मा है.
अनुभव विधि में मन वृत्ति में अनुभूत होता है या मन वृत्ति के अनुसार चलता है. वृत्ति चित्त के अनुसार चलता है. चित्त से जो प्रेरणा हुई उसको वृत्ति स्वीकार लेता है, इसका नाम है - वृत्ति का चित्त में अनुभव करना. चित्त बुद्धि में अनुभव करता है. बुद्धि आत्मा में और आत्मा सहअस्तित्व में अनुभव करता है. इस ढंग से दृष्टा विधि और अनुभव विधि के योगफल में जीवन जीवन का अध्ययन करता है. यह व्यवस्था जीवन में ही बनी है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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