अध्ययन के साथ प्रमाणित होने का उद्देश्य होना आवश्यक है, अन्यथा हम तुलन हो कर वहीं रह जाते हैं. साक्षात्कार होने तक जाते ही नहीं हैं. भाषा में ही रह जाते हैं, प्रमाण तक नहीं जा पाते. यदि आपको यह रास्ता स्पष्ट हो गया है तो इसका अभ्यास करके देखिये. यदि यह कर्माभ्यास और व्यव्हाराभ्यास में आ जाता है तो हम पार पा गए! फिर आगे प्रमाणित होने के क्रम में क्या करना है, यह तय किया जा सकता है.
- श्रद्देय नागराज जी के साथ संवाद (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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