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Friday, November 27, 2009

समझना और कार्य-करना

शब्द के अर्थ को मानव ही समझता है। मानव ही अपनी समझ के अनुसार कार्य करता है।

समझना" और "कार्य करना" ये दो भाग हैं। "कार्य करने" के पक्ष में जीव-जानवर कुछ शब्दों को स्वीकारते हैं - किंतु वे उन शब्दों के अर्थ को "समझते" नहीं हैं। जैसे - कुछ जानवरों को यह बताने पर, यहाँ जाना है - वे वहाँ चले भी जाते हैं। सर्कस में जानवरों से नाच-कूद कराते ही हैं। लेकिन जानवरों को आप "सह-अस्तित्व" समझाओ और वे समझ जाएँ - ऐसा होता नहीं है। आप जानवरों को "जीवन" समझाओ - और वे समझ जाएँ, ऐसा होता नहीं है। आप जानवरों को "मानवीयता पूर्ण आचरण" समझाओ - और वे मानवीयता पूर्ण आचरण करने लगें, ऐसा होता नहीं है।

शब्द से इंगित अर्थ को मानव ही समझता है। अर्थ literature में नहीं आता। शब्द के अर्थ में सह-अस्तित्व वास्तविकता के रूप में इंगित होता है, जिसको मानव ही समझता है।

अब हमको यह निर्णय लेना है - हमको जीव-जानवरों जैसे "कार्य करने" की सीमा में जीना है, या "समझ" की सीमा में जीना है?

समझ कर मनुष्य समाधान, समृद्धि, अभय, और सह-अस्तित्व पूर्वक जी पाता है। समझ के प्रमाणित होने की यही जगह हैं - और कहीं भी नहीं।

समझे हैं, तो ऐसे जी पायेंगे।
नहीं समझे हैं, तो ऐसे जी नहीं पायेंगे।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २००९, अमरकंटक)

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