प्रकृति ने मानव को प्रकटित कर दिया, कल्पनाशीलता-कर्म स्वतंत्रता सहित! मानव शरीर रचना ऐसा हुआ कि जीवन उससे कल्पनाशीलता कर्म-स्वतंत्रता को प्रकाशित कर सके. कर्म स्वतंत्रता के प्रयोग से मानव ने मनाकार को साकार करने का काम पूरा कर लिया. मनः स्वस्थता का भाग वीरान पड़ा रहा. उसको पूरा किया जाए! मनः स्वस्थता न होने का कारण है - संवेदनाओं का अनियंत्रित रहना. संवेदनाएं नियंत्रित रहने के लिए संज्ञानशीलता ही एक मात्र शरण है.
मनः स्वस्थता न होने का दर्द आदर्शवाद व्यक्त किया है, पर मनः स्वस्थता प्रमाणित करने का काम आदर्शवाद कर नहीं पाया. कोई भी मूल्य आदर्शवादी विधि से परंपरा में प्रमाणित नहीं हुआ. आदर्शवादी विधि में परिवार को छोड़ कर विरक्ति में जाने की बात रही. भक्ति-विरक्ति परिवार के साथ अविश्वास को स्थापित करके गया, उसके बाद क्या उसका बात करना है?
दूसरी ओर भौतिकवाद संसार को राक्षस बनके भक्षण करके जीने की बात ही किया. उसमे संसार के साथ विश्वास कहाँ है? इतना ही है मूल सूत्र.
साक्षात्कार के बारे में आदर्शवाद में कहा गया, किन्तु वह परंपरा में प्रमाणित नहीं हुआ. "साक्षात्कार" शब्द आदर्शवाद ने दिया किन्तु वह व्यव्हार में प्रमाण परंपरा नहीं हुआ. इतना ही बात है.
साक्षात्कार का अर्हता जीवन में रहता है किन्तु परम्परा में प्रमाण नहीं है. मानव ने अभी तक भौतिक संसार का साक्षात्कार किया है और कल्पनाशीलता का साक्षात्कार किया है - किन्तु मूल्यों का साक्षात्कार किया नहीं है. मूल्यों का साक्षात्कार करने का प्रमाण अभी तक मानव परंपरा में हुआ नहीं. कल्पनाशीलता का साक्षात्कार हुआ है - तभी तो मनाकार को साकार कर पाया है और मानव आप जहाँ है वहां पहुंचा है. मनः स्वस्थता का अभिलाषा मानव में बना ही है. मनः स्वस्थता का स्त्रोत मानव को ही बनना था, वह नहीं बना. मनः स्वस्थता को प्रमाणित करने का स्त्रोत मानव ही है. मनः स्वस्थता को अभी तक मानव परम्परा में या तो सुविधा-संग्रह से जोड़ लिया गया या भक्ति-विरक्ति से जोड़ लिया गया. सहअस्तित्ववाद में मनः स्वस्थता के मानव परंपरा में स्वरूप को समाधान-समृद्धि होना समझाया गया है.
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
मनः स्वस्थता न होने का दर्द आदर्शवाद व्यक्त किया है, पर मनः स्वस्थता प्रमाणित करने का काम आदर्शवाद कर नहीं पाया. कोई भी मूल्य आदर्शवादी विधि से परंपरा में प्रमाणित नहीं हुआ. आदर्शवादी विधि में परिवार को छोड़ कर विरक्ति में जाने की बात रही. भक्ति-विरक्ति परिवार के साथ अविश्वास को स्थापित करके गया, उसके बाद क्या उसका बात करना है?
दूसरी ओर भौतिकवाद संसार को राक्षस बनके भक्षण करके जीने की बात ही किया. उसमे संसार के साथ विश्वास कहाँ है? इतना ही है मूल सूत्र.
साक्षात्कार के बारे में आदर्शवाद में कहा गया, किन्तु वह परंपरा में प्रमाणित नहीं हुआ. "साक्षात्कार" शब्द आदर्शवाद ने दिया किन्तु वह व्यव्हार में प्रमाण परंपरा नहीं हुआ. इतना ही बात है.
साक्षात्कार का अर्हता जीवन में रहता है किन्तु परम्परा में प्रमाण नहीं है. मानव ने अभी तक भौतिक संसार का साक्षात्कार किया है और कल्पनाशीलता का साक्षात्कार किया है - किन्तु मूल्यों का साक्षात्कार किया नहीं है. मूल्यों का साक्षात्कार करने का प्रमाण अभी तक मानव परंपरा में हुआ नहीं. कल्पनाशीलता का साक्षात्कार हुआ है - तभी तो मनाकार को साकार कर पाया है और मानव आप जहाँ है वहां पहुंचा है. मनः स्वस्थता का अभिलाषा मानव में बना ही है. मनः स्वस्थता का स्त्रोत मानव को ही बनना था, वह नहीं बना. मनः स्वस्थता को प्रमाणित करने का स्त्रोत मानव ही है. मनः स्वस्थता को अभी तक मानव परम्परा में या तो सुविधा-संग्रह से जोड़ लिया गया या भक्ति-विरक्ति से जोड़ लिया गया. सहअस्तित्ववाद में मनः स्वस्थता के मानव परंपरा में स्वरूप को समाधान-समृद्धि होना समझाया गया है.
- श्रद्धेय ए नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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