प्रश्न: "साक्षात्कार क्रमिक होता है. एक-एक वास्तविकता का साक्षात्कार होता है" - ऐसा आपने बताया है. साथ ही आप यह भी कहते हैं - "समझ का भाग-विभाग नहीं होता. दो ही स्थितियां हैं - समझे या नहीं समझे." जब समझने की प्रक्रिया क्रमिक है तो समझ की उपलब्धि क्रमिक कैसे नहीं है?
उत्तर: सहअस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व समझने की समग्र वस्तु है. अस्तित्व व्यापक में अनंत एक-एक समाये हुए होने के स्वरूप में है. एक-एक का अध्ययन करते हुए अस्तित्व को टुकड़ों में माना जाए या एक समग्र वस्तु माना जाए? अस्तित्व एक "समग्र वस्तु" है.
व्यापक वस्तु को छोड़ कर कोई अध्ययन नहीं है. व्यापक वस्तु में एक-एक का अध्ययन है. एक-एक वस्तु को चार अवस्थाओं में पहचाना. इनमे सिन्धु-बिंदु न्याय को पहचाना. एक वस्तु का अध्ययन होने से उस अवस्था की सारी वस्तुओं का अध्ययन हो जाता है. चारों अवस्थाओं का स्वभाव-धर्म अलग-अलग बताया.
एक-एक का गणना होता है. एक-एक वस्तु व्यापक में अविभाज्य है. एक-एक वस्तु अलग-अलग होता है, उसकी अलग-अलग पहचान है, इसलिए उनका अलग-अलग अध्ययन भी है. व्यापक वस्तु का अनुभव होता है. व्यापक वस्तु का अनुभव होता है तो "समझे". उससे पहले "नहीं समझे".
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
उत्तर: सहअस्तित्व स्वरूपी अस्तित्व समझने की समग्र वस्तु है. अस्तित्व व्यापक में अनंत एक-एक समाये हुए होने के स्वरूप में है. एक-एक का अध्ययन करते हुए अस्तित्व को टुकड़ों में माना जाए या एक समग्र वस्तु माना जाए? अस्तित्व एक "समग्र वस्तु" है.
व्यापक वस्तु को छोड़ कर कोई अध्ययन नहीं है. व्यापक वस्तु में एक-एक का अध्ययन है. एक-एक वस्तु को चार अवस्थाओं में पहचाना. इनमे सिन्धु-बिंदु न्याय को पहचाना. एक वस्तु का अध्ययन होने से उस अवस्था की सारी वस्तुओं का अध्ययन हो जाता है. चारों अवस्थाओं का स्वभाव-धर्म अलग-अलग बताया.
एक-एक का गणना होता है. एक-एक वस्तु व्यापक में अविभाज्य है. एक-एक वस्तु अलग-अलग होता है, उसकी अलग-अलग पहचान है, इसलिए उनका अलग-अलग अध्ययन भी है. व्यापक वस्तु का अनुभव होता है. व्यापक वस्तु का अनुभव होता है तो "समझे". उससे पहले "नहीं समझे".
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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