गणितात्मक भाषा जोड़ने-घटाने से सम्बंधित है.
गुणात्मक भाषा उपयोगिता और सदुपयोगिता को पहचानने से सम्बंधित है.
कारणात्मक भाषा में प्रयोजनों को सिद्ध करने की विधि आती है. कारणात्मक भाषा सत्य को इंगित करता है. सत्य सार्वभौमता में प्रमाणित होता है.
उपयोगिता का निर्वाह = न्याय. सदुपयोगिता का निर्वाह = धर्म (समाधान). प्रयोजनशीलता का निर्वाह = सत्य.
सहअस्तित्व प्रमाणित होना ही प्रयोजन है. हमारी भाषा, भाव, मुद्रा, अंगहार, व्यवहार से सहअस्तित्व प्रमाणित होना ही प्रयोजन है.
उपयोगिता व सदुपयोगिता व्यव्हार में या परस्परता में (जीने में) प्रमाणित हो जाता है. उपयोगिता परिवार में तथा सदुपयोगिता अखंड-समाज में समझ आता है. सार्वभौमता या प्रयोजनशीलता अनुभवमूलक विधि से ही आता है. अनुभव के बिना कारणात्मक स्वरूप में प्रयोजन सिद्द नहीं होता. इसीलिये कारणात्मक भाषा दी जाती है. कारणात्मक विधि से प्रयोजनशीलता सिद्ध होता है.
गणित आँखों से अधिक है पर समझ से कम है. समझ को लेकर गुणात्मक और कारणात्मक भाषा है. गुणात्मक भाषा में उपयोग-सदुपयोग प्रमाणित हो जाते हैं. उत्पादन (व्यवसाय) और व्यवहार गणितात्मक और गुणात्मक भाषा से सिद्ध हो जाता है. उसके बाद कारणात्मक भाषा से प्रयोजन सिद्ध होता है. प्रयोजन सिद्ध होने का मतलब है - परम सत्य स्वरूपी सहअस्तित्व समझ में आना और प्रमाणित होना.
पूरा दर्शन कारणात्मक भाषा में लिखा गया है. विचार (वाद) और शास्त्र को गुणात्मक भाषा में लिखा गया है. गुणात्मक भाषा से उपयोग और सदुपयोग का स्वरूप स्पष्ट होता है. दर्शन से प्रयोजन का स्वरूप स्पष्ट होता है. इस प्रकार पूरा वांग्मय कारणात्मक और गुणात्मक भाषा में लिखा गया है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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