प्रश्न: दिव्यमानव एषणा मुक्त विधि से किस प्रकार मानवीयता पूर्ण आचरण का निर्वाह करता है? क्या मानवीयता पूर्ण आचरण करने के लिए जन बल, धन बल और यश बल की आवश्यकता नहीं है?
उत्तर: शरीर यात्रा पर्यंत न्याय सहज, समाधान सहज, सत्य सहज निर्वाह करने में एश्नाओं की अनिवार्यता नहीं है. यह वरीयता की बात है. सत्य पूर्वक जीने में न्याय और धर्म पूर्वक जीना समाया रहता है. अनुभव के बाद वरीयता क्रम में जाग्रति का प्रमाण होता है - पहले न्याय, फिर धर्म, फिर सत्य.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००७, अमरकंटक)
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