प्रश्न: साक्षात्कार के लिए अपनी गति कैसे बनाई जाए?
उत्तर: संबंधों का प्रयोजनों को पहचानने के बाद गति बनेगी. संबंधों का प्रयोजन यदि समझ नहीं आया तो हमारा गति कैसे होगा? उसके लिए अध्ययन ही एक मात्र रास्ता है. इसमें मनमानी लगता नहीं है. प्रयोजन के साथ जुड़ने पर गति होता ही है.
निष्ठा पूर्वक परिवार में निर्वाह होने से अग्रिम गति होता है. समझदार परिवार में संबंधों का निर्वाह होता है. फिर शेष संसार के साथ हम संबंधों का निर्वाह करते हैं, जबकि वहाँ से वो नहीं करते हैं - ऐसे में हमारा संबंधों के निर्वाह में विचलित नहीं होना ही हमारी समझदारी का प्रमाण है. सामने वाला समझता नहीं है - इसलिए हम उनका तिरस्कार कर दें, उपेक्षा कर दें - यह हमारी समझ का प्रदर्शन नहीं है. उसकी जगह इसको ऐसे देखना - हम समझा नहीं पा रहे हैं, समझाने का नया तरीका हमको शोध करना है. कोई समझता नहीं है तो उसको कंडम (condemn) नहीं करना है. अस्तित्व में कंडम करने वाली कोई वस्तु नहीं है. सभी वस्तुएं एक दूसरे से जुड़ी हैं. हमारे ज्ञान में कमी रहती है, इसलिए हम दूसरे को कंडम करते हैं. ज्ञान में कमी दुरुस्त हो गया तो अपने सम्प्रेष्णा के तरीकों को बदलना, तो हम समझाने में सफल हो जाते हैं. यह मैं स्वयं करता हूँ. मेरे पास तो सभी प्रकार के लोग आते ही हैं.
समझने के बाद संसार से कोई शिकायत नहीं रहता.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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