परिवर्तन के लिए हम जहाँ हैं वहाँ से विकासोनुम्खता को पहचानना होगा. हम बर्बाद करते रहे और विकास की बात करते रहे तो वह श्वेत पत्र (सफ़ेद झूठ) हो गया कि नहीं? अभी सर्वोपरि विद्वान ऐसा ही कर रहे हैं. यह एक दुखदायी स्थिति है.
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ सम्वाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
- श्रद्धेय नागराज जी के साथ सम्वाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
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