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Saturday, April 16, 2011

त्याग-वैराग्य या समाधान-समृद्धि

त्याग और वैराग्य क्या है?

त्याग और वैराग्य को आदर्शवादी मान्यता में बहुत सम्मान किया है. त्याग और वैराग्य के असली स्वरूप को पहचानने की आवश्यकता है.

त्याग है – अनावश्यकता का विसर्जन. जैसे अभी सर्दी है, तो हम इस कम्बल को ओढ़े हैं. सर्दी लगनी बंद हो गयी तो यह कम्बल अनावश्यक हो गया, और उसको हमने छोड़ दिया. यही त्याग का सही स्वरूप है. जो हमारे लिए अनावश्यक है उसको हमने छोड़ दिया – इससे अधिक त्याग कुछ नहीं है.

राग का मतलब है – संग्रह. वैराग्य या विराग का मतलब है – असंग्रह या समृद्धि. यही वैराग्य का सही स्वरूप है. मानव को समृद्धि चाहिए या विरक्ति चाहिए? पूछने पर यही निकलता है – समृद्धि चाहिए.

प्रश्न: समाधान-समृद्धि की आवश्यकता मुझे अपने लिए स्वीकार होती है, पर यह आवश्यकता सभी की है – इसका मैं कैसे निश्चयन करूं?

समाधान-समृद्धि पूर्वक जीने की आवश्यकता को मैंने अपने लिए स्वीकारा और प्रमाणित किया. फिर ऐसा जीने की आवश्यकता सभी की है या नहीं – इसके बारे में आपसे पूछना शुरू किया. वैसे ही आप भी करोगे. पहले हमको ऐसा जीना है यह सोचें – या सब लोग ऐसे जीने लगेंगे तब हम ऐसा जियेंगे, यह सोचें?

अभी जैसे धरती बीमार हो गयी, प्रदूषण छा गया. अपने-पराये की दूरियां बढ़ गयी, अपराध प्रवृत्ति बढ़ गयी. लोगों से पूछते हैं – धरती बीमार होने के बाद आदमी कहाँ रहेगा? इसके उत्तर में लोग कहते हैं – सब मरेंगे तो हम भी मर जायेंगे!

“सब समझ के लिए तैयार जाएँ, उसके बाद हम समझेंगे” – ऐसा सोचना या “हम अपने समझ के लिए तैयार होंगे” – ऐसा सोचना. क्या ठीक होगा? निष्ठान्वित होने की बात है – हम पहले ठीक होंगे, बाकी लोग ठीक होते रहेंगे. बुचकने की बात है – दूसरे समझ लें, हम बाद में देखेंगे!

- अनुभव शिविर, जनवरी २०११, अमरकंटक, बाबा श्री ए नागराज के उदबोधन से

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