हर व्यक्ति अपने तरह से जीना शुरू करता है। जीव-चेतना में सुविधा-संग्रह पूर्वक जीना शुरू करता है। उसको वह त्यागना नहीं चाहता है। सूक्ष्म रूप में देखें तो इतना ही अड़चन है। और कुछ भी नहीं है। इसी में देरी लगती है। जबकि समाधान-समृद्धि में सुविधा-संग्रह दोनों विलय होता है - इस बात में विश्वास नहीं कर पाता है। समाधान-समृद्धि गुरु-मूल्य है। सुविधा-संग्रह लघु-मूल्य है। गुरु-मूल्य में लघु-मूल्य विलय होता है।
अनुभव है – अनुक्रम से स्वीकृति, और अनुक्रम से अभिव्यक्ति। अनुक्रम है – विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम, जागृति. सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान, जीवन ज्ञान, मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान में मैं पारंगत हूँ और प्रमाणित हूँ – यही अनुभव है।
- अनुभव-शिविर जनवरी २०११ – अमरकंटक में बाबा श्री ए नागराज के उदबोधन पर आधारित
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