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Saturday, March 27, 2010

सह-अस्तित्व में गति - भाग २

1 comment:

Roshani said...

समाधान = भय मुक्ति (भाग २ )
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और अभयता एक मूलभूत आवश्यकता है| भयमुक्ति एक आवश्यकता है| ये दोनों होने के बाद हम समृद्धि के पास जाते हैं|
ये तीनों मिलने के पश्चात सह -अस्तित्व प्रमाणित होता है| इस ढंग की मानव का जो कुछ भी झांकी बसी हुई है, सजी हुई है प्रकृतिक नैसर्गिक विधि से वो इसी को सदा सदा बताता है| इसको मनुष्य पहचानने की व्यवस्था है, मनुष्य पहचानकर के प्रमाणित करने की व्यवस्था है| पहचानने जाता है तो समझदार होता है|
जैसा एक परमाणु दूसरे परमाणु को पहचानता है वो अणु के रूप में रचना हो जाता है| एक अणु दूसरे अणु को पहचानने से अणुरचित रचनाएँ हो जाते हैं|
एक कोषाएं दूसरा कोशा को पहचानने पर एक कोषाओं से रचित रचनाएँ विविध प्रकार से हो ही जाते हैं|
और एक ईंटा दूसरे ईंटा को पहचानने की विधि से दीवाल सीधा हो जाता है|
इसी प्रकार हर एक रचनाएँ एक दूसरे को पहचानने के क्रम में रखी हुई है ...हर रचना|
हर सही रचना, हर सार्थक रचना कुल मिलाकर के एक दूसरे को पहचानने के क्रम में रखा हुआ है| इस ढंग से बना|
उसी में मनुष्य भी आता है| एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को पहचानने के क्रम में ही सही गलती होती है|
चाहते क्या है पूछा तो सही चाहते हैं|
सही जानना है तो सऊर से पहचाना जाए| क्या सऊर से पहचाना जाए भई?
◘ हर मनुष्य समाधान चाहता है इसलिए समाधान से जोड़ा जाए|
◘ हर मनुष्य भयभीति से मुक्ति चाहता है अभयता से जोड़ा जाए|
◘ हर व्यक्ति समृद्धि को प्यार करता है स्वीकारता है इसलिए समृद्धि से जोड़ा जाए|
◘ इसी अस्तित्व सहज रूप में ही हम सह अस्तित्व में है इसलिए सह- अस्तित्व से जोड़ा जाए|
जोड़ने का चार तरीके हुए, चार आयाम हुए|
आप हम मंगल मैत्री, समाधान पाने का और सुखी होने का चार आयाम हुए|
◘ सह अस्तित्व विधि से हम सुखी हो सकते हैं|
◘ अभयता विधि से सुख की संभावना बन जाती है|
◘ समृद्धि विधि से सुख की संभावना आ जाती है|
◘ समाधान विधि से सुख की संभावना आता है|
सुख की संभावना का चार dimension अपने आप से रखा हुआ है|
इसको प्रयोग करना है नहीं करना है इसको decide करना है ये तो व्यक्ति ही करेगा|
प्रयोग करना है तो समझदार होगा ही ... नहीं प्रयोग करना है तो समझदार होगा नहीं|
ठीक है?
◘ समझना वस्तु की ही होगा, समाधान वस्तु के रूप में क्या चीज है?
अभय अर्थात भय से मुक्ति, वास्तविक रूप में है क्या चीज, वस्तु के रूप में?
वस्तु के रूप में जाते हो तो विश्वास|
विश्वास का धारक वाहक आदमी| वस्तु के रूप में, गति के रूप में विश्वास है, अभयता का जो सकारात्मक भाषा है वो विश्वास है|
सदा सदा वर्तमान में विश्वास रखना ही मनुष्य का भय से मुक्ति का प्रमाण है|
और मनुष्य मनुष्य से भयभीत हो करके मिलने की जगह में विश्वास पूर्वक मिलता है| सुख की संभावना, समाधान की संभावना बनता है कि नहीं बनता है?
तो भयभीत होकर के एक दूसरे से मिलने से कहाँ संभावना बनता है? सुख की संभावना तो करोड़ों मील दूर भागता है|
◘ तो मनुष्य को परस्पर मिलने के लिए विश्वास चाहिए, परस्पर मिलने के लिए साथ साथ होने का अरमान चाहिए| सह अस्तित्व चाहिए|
मनुष्य से मनुष्य मिलकर जीने के लिए समृद्धि चाहिए और समाधान निरंतर चाहिए|
ये चार चीज को अपने में सँजो के रखने के लिए मूल मंत्र है "समझदारी"|
समझदारी आने के बाद जो ईमानदारी, समझदारी के साथ ईमानदारी वर्तता है, ये चीजें आने लगता है|
उसके साथ जिम्मेवारी होने से और प्रमाणित होने के पास में होते हैं| भागीदारी कर देने पर प्रमाणित हो ही जाते हैं|
इस विधि से हम अपने को अपना पहचान समाधान, समृद्धि, अभय, सह अस्तित्व पूर्वक अस्तित्व में प्रस्तुत करना सफल हो जाता है|