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Saturday, March 27, 2010

नाश के भय से मुक्ति






प्रश्न:  वस्तु का अपने में नियंत्रण कैसा रहता है?  यह नियंत्रण कैसा दिखता है? 

उत्तर:  वस्तु के सभी ओर आँखों में जो नियंत्रण रेखा दिखती है, वह गवाही देता है कि प्रत्येक - एक चाहे छोटे से छोटे क्यों न हो या बड़े से बड़े क्यों ना हो - इसके सभी ओर सत्ता से घिरा है.  यह आँखों में दिखाई पड़ता है.  ये ही चीज है जो हर इकाई की स्थिति, गति, मुद्रा, भंगिमा, विन्यास की नियंत्रण रेखा है. 


इसी से ये नियंत्रित रहने से और इसमें डूबे रहने से इकाई का संरक्षित रहना पाया जाता है.  इसी एक के संज्ञा में जो कुछ भी इन्हीं में कुल मिलाकर के आकर्षण, प्रत्याकर्षण, विकर्षण ये सारे चीज नियंत्रण रेखा में ही होता रहता है,  नियंत्रण रेखा से बाहर जाकर कुछ नहीं होता. 

अब इकाई के स्वयं में कई क्रियाएँ होते हैं और उसमें परस्पर नियंत्रण संतुलन की बात होती है.  इकाई में जो कुछ भी ताकत है उसे इकाई अपने अंतर्गत क्रियाओं के संतुलन के लिए स्वयं लगाता है.  इकाई के सदा सदा बने रहने के लिए उसे सत्ता में नित्य संरक्षण है ही.  

वस्तु की शाश्वतीयता इसी नियंत्रण वश, ऊर्जासंपन्नता वश नित्य वर्तमान है.  ये उस जगह को ध्वनित करता है.  यह नाश के भय से मुक्ति का काफी अच्छा, सुलझा हुआ मार्ग है.  इसमें किसी का कोई वकालत की जरूरत नहीं है.  स्वयं चिंतन पूर्वक अभयता की जगह को पहचाना जा सकता है.  उसके लिए ये नियंत्रण, संरक्षण की एक झांकी सदा सदा प्रत्येक एक के साथ सजा ही रहती है.


नाश के भय से मुक्ति जीवन का अमरत्व समझ आने पर भी है.

जीवन नित्य है, अक्षय शक्ति - अक्षय बल सम्पन्न है.  जीवन की मृत्यु होती नहीं है ना उसका कोई परिणाम होता है.  अब होगा क्या जीवन में? जागृति होगा या भ्रम होगा.

इसके पहले सारा भौतिक-रासायनिक संसार में श्रम, गति, परिणाम ये तीनों बना रहा.  अब जीवन पद होने के पश्चात परिणाम की बात ही समाप्त हो गई.  परिणाम का बात समाप्त हो गया तो श्रम और गति की निरंतरता हो गई, ऐसे तो गति का निरंतरता पहले भी था लेकिन पहले गति की निरंतरता परिणाम के साथ रहा.  अब जीवन पद में परिणाम विहीन गति की निरंतरता हो गई.  इसी को हम कहते हैं अक्षय शक्ति, अक्षय बल.

ये अक्षय शक्ति-अक्षय बल के साथ जीवन का जो वैभव है उसे उसके अमरत्व के साथ पहचानने की आवश्यकता है.  ये समझ में आने से मृत्यु भय से आदमी छुटकारा पाता है. मरने के भय से सर्वथा मुक्त हो सकता है. 

भय के वशीभूत होकर, पीड़ित रहते हुए हम सही कार्य को भी गलत कर देते हैं.  वो तो सिद्धान्त ही होता है जिसके पास रहता है उसी को आवंटित किए करता है - उस आधार पर मनुष्य को भय से मुक्त होना बहुत आवश्यक है.  भय मुक्ति मानव की एक मूलभूत आवश्यकता है.

समस्या भी एक पीड़ा है.  समस्या को समाधान से तृप्त करने की आवश्यकता है.  समाधानित रहने से मनुष्य-मनुष्य के साथ जितना भी परिस्थितियाँ आता है उसका जवाब हो जाता है, एक दूसरे के संतुष्टि मिलने का तरीका निकलती है और सुखी होना बनता है.  इसलिए समाधान भी मानव की एक मूलभूत आवश्यकता है|


समाधानित रहने से और भयमुक्त रहने से आदमी सभी कार्य को सऊर से करता है.  

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर १९९९, आन्वरी)

1 comment:

Roshani said...

समाधान = भय मुक्ति (भाग 1)
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◘ अभी हमने अच्छे से समझने की कोशिश की, एक वस्तु अपने नियंत्रण कैसा रहता है? नियंत्रण कैसा दिखता है?
इस आँखों में जो नियंत्रण रेखा देखने की बात आज भी गवाही देता है कि प्रत्येक एक चाहे छोटे से छोटे क्यों न हो या बड़े से बड़े क्यों ना हो , इसके सभी ओर सत्ता घिरा हुआ दिखाई पड़ता है| आँखों में दिखाई पड़ता है| ये ही चीज है जो इकाई की स्थिति गति, मुद्रा, भंगिमा, विन्यास हर एक का नियंत्रण रेखा यही है|
इसी से ये नियंत्रित रहने से और डूबे रहने से वो अपने आप से संरक्षित रहना पाया जाता है|
ये मुख्य में उस बात को ध्वनित करता है वस्तु की शाश्वीयता इसी नियंत्रण वश, ऊर्जा संपन्नता वश नित्य वर्तमान है| ये उस जगह को ध्वनित करता है|
ये ध्वनि से हम नाशवाद से जैसे भयभीत होते हैं तो भयभीत से दूर होने का काफी अच्छा रास्ता है| सुलझा हुआ रास्ता है|
इसमें किसी का कोई वकालत की जरूरत नहीं है|
स्वयं चिंतन पूर्वक अभयता की जगह को पहचाना जा सकता है| उसके लिए ये नियंत्रण, संरक्षण की एक झांकी सदा सदा प्रत्येक एक के साथ सजा ही रहती है|
इसी एक के संज्ञा में जो कुछ भी इन्हीं में कुल मिलाकर के आकर्षण, प्रत्याकर्षण, विकर्षण ये सारे चीज नियंत्रण रेखा में ही होता रहता है|
नियंत्रण रेखा से बाहर जाकर कुछ नहीं होता|
अब स्वयं एक में कई क्रियाएँ होते हैं उसमें परस्पर नियंत्रण संतुलन की बात होती है| उसमें जो कुछ भी ताकत है इस स्वयं के संतुलन के लिए स्वयं लगाता है और सदा सदा बने रहने के लिए सत्ता में नित्य संरक्षण है ही|
इस ढंग से नाश के भय से मुक्ति होने के मार्ग है|
एक ये है|
◘ दूसरा बात आती है नाश के भय से मुक्ति की...
जीवन नित्य है, जीवन अक्षय शक्ति, अक्षय बल सम्पन्न है| जीवन की मृत्यु होती नहीं है ना परिणाम होता है|
अब होगा क्या जीवन में? जागृति होगा या भ्रम होगा| दो ही धंधा है| ठीक है?
इसके पहले की क्या थी? सारा भौतिक संसार में रासायनिक संसार में श्रम, गति, परिणाम | ये तीनों पीछे पड़ा रहा|
अब जीवन पद होने के पश्चात जीवन में परिणाम की बाते ही समाप्त हो गई| परिणाम का बात समाप्त हो गया तो श्रम का निरंतरता हो गई| गति की निरंतरता हो गई|
ऐसे तो गति का निरंतरता पहले भी था| इसका परिणाम के साथ रहा गति की निरंतरता | अभी परिणाम विहीन ये गति की निरंतरता हो गई|
इसी को हम कहते हैं अक्षय शक्ति, अक्षय बल|
ये अक्षय शक्ति, अक्षय बल के साथ जीवन का जो वैभव है अमरत्व के साथ पहचानने की आवश्यकता है| जो जीवन का अमरत्व समझ में आ जाए| ये समझ में आने से मृत्यु भय से आदमी छुटकारा पाता है| मरने के भय से मायने सर्वथा मुक्त हो सकता है| यदि भय से मुक्त हो जाता है और धरती पर आदमी सर्वाधिक काम सऊर से कर पाता है|
भय से मुक्त होने से सर्वाधिक कार्यों को भय से मुक्त होकर कर पाता है आदमी|
भय से पीड़ित रहते हुए सही कार्य को भी हम गलत कर देते हैं| छोटी सी बात...
भय के वशीभूत होकर हर सही कार्य को गलत कर देते हैं|
भयभीत हो गए, एक आदमी हल जोतने लगा , कूढ़ सीधा होबे ही नहीं करेगा, कूढ़ ही सीध ना होगा| न दिमाग के सीध रहेगा तो कूढ़ काहे को सीध होगा भाई?
तो घर के अंदर रहेगा वो जहाँ बैठना है वहाँ बैठेगा और कोई विकट स्थिति को पैदा कर देगा| डाँटेगा, डपटेगा, ये होगा, वो होगा सब कुछ होगा, स्वयं परेशान होगा , दूसरों को परेशान करेगा|
वो तो सिद्धान्त ही होता है जिसके पास रहता है उसी को आबंटित किए करता है उस आधार पर मनुष्य को भय से मुक्त होना बहुत आवश्यक है| यह एक आवश्यकता है|
समस्या भी एक पीड़ा है| समस्या को समाधान से तृप्त करने की आवश्यकता|
समाधानित रहने से भय से मुक्त रहने से आदमी सभी कार्य को सऊर से करता है| समाधानित रहने से मनुष्य -मनुष्य के साथ जितना भी परिस्थितियाँ आता है उसका जवाब हो जाता है, एक दूसरे के संतुष्टि मिलने का तरीका निकलती है और प्रसन्न होने का दिन आती है, एक क्षण आता है|
इसलिए समाधान ही एक मूलभूत आवश्यकता है|