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Friday, March 26, 2010

विज्ञान विधि की नासमझी





प्रश्न:  विज्ञान की विधि को आप "नासमझी" कैसे कहते हैं?

उत्तर:  पहली बात यह है - आँखों में सम्पूर्णता समाता नहीं है.  जबकि विज्ञान विधि में इन्द्रियगोचर को अंतिम सत्य मानते हैं.

दूसरी बात - विज्ञान विधि में हस्तक्षेप किये बिना, या अपने स्वरूप से विचलित किये बिना, किसी वस्तु को देखना जानते ही नहीं हैं.

तीसरी बात - विज्ञान विधि में स्थिति और गति के अविभाज्य स्वरूप में क्रिया को नहीं देखते.   सर्वाधिक गति के साथ परमाण्वीय अंशों को एक स्थान में देखने की कल्पना आप कैसे करते हैं, फिर मात्रा की अस्थिरता-अनिश्चयता बताते हैं?

अस्तित्व में "अनिश्चयता" नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं है.  मनुष्य में निश्चयता को पहचानने में असमर्थता रहती है.  इसलिए मनुष्य में निश्चयता को पहचानने का सामर्थ्य जोड़ा जाए.

अस्तित्व में स्थिरता और निश्चयता है.  अस्तित्व स्थिर है, जागृति निश्चित है.

हरेक परमाणु अपने वातावरण सहित सम्पूर्ण है.  उसका आचरण निश्चित है.  हर परमाणु का आचरण निश्चित होने के आधार पर ही वह अणु और अणु रचित रचना के वैभव को व्यक्त किया रहता है.  उसी तरह एक प्राणकोषा भी अपने वातावरण सहित सम्पूर्ण है.  वह अपने सम्पूर्णता के साथ निश्चित आचरण को देता जाता है.  इस आधार पर ही प्राणकोषा वनस्पति रचना से लेकर मनुष्य शरीर रचना तक प्रमाणित किया है.  जीवन अपने वातावरण सहित सम्पूर्णता के साथ अक्षय-बल और अक्षय-शक्ति को प्रमाणित किया रहता है.  यही जीवन यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता में जागृत हो कर क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता को मानव परंपरा में प्रमाणित करता है.

- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर १९९९, आन्वरी)

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