शरीर में ज्ञानवाही तंत्र और क्रियावाही तंत्र हैं. ज्ञानवाही तंत्र का सारा कार्यकलाप जीवन द्वारा मेधस के द्वारा संचालित रहता है. क्रियावाही तंत्र का क्रियाकलाप मेधस द्वारा संचालित नहीं होता, पर वह मेधस से सम्बद्ध रहता है.
शरीर के अनुसार क्रियावाही तंत्र है, जीवन के अनुसार ज्ञानवाही तंत्र है.
साँस लेना क्रियावाही तंत्र है. गंध से सुगंध की अपेक्षा करना ज्ञानवाही तंत्र है.
भोजन को मुख से ग्रहण करना, उसको पचाना और मल विसर्जन क्रियावाही तंत्र है. जीभ में रूचि के अपेक्षा करना ज्ञानवाही तंत्र है.
शब्द का कान द्वारा सुनना क्रियावाही तंत्र है. शब्द में सुन्दरता की अपेक्षा करना ज्ञानवाही तंत्र है.
हाथ से छूना क्रियावाही तंत्र है. सुखद स्पर्श की अपेक्षा करना ज्ञानवाही तंत्र है.
क्रियावाही तंत्र के कार्यकलाप के संपादन के लिए भी जीवन द्वारा शरीर को जीवंत बनाए रखने का आवश्यकता बना रहता है. ज्ञानवाही तंत्र का कोई भी काम जीवन के बिना हो ही नहीं सकता. जीवन के ओझिल होने पर ज्ञानवाही तंत्र लुप्त प्राय हो जाता है. क्रियावाही तंत्र जीवन के बिना कुछ देर चलता रह सकता है, कुछ देर बाद वह भी बंद हो जाता है.
ज्ञानवाही तंत्र के बंद होने के बाद क्रियावाही तंत्र बंद होता है. शरीर में आये रोगों को ठीक करने के लिए जीवन ज्ञानवाही तंत्र से भरसक प्रयत्न करता ही रहता है. हरेक शरीर को चलाने वाला जीवन यह करता है. अंततोगत्वा जब ठीक नहीं हो पाता है तो शरीर को छोड़ देता है.
संवेदनाओं को व्यक्त कर देना ज्ञानवाही तंत्र का प्रारंभिक स्वरूप है. इस प्रारम्भिक स्वरूप में जीव संसार और मनुष्य संसार में समानता ही रहती है. मनुष्य परंपरा में अभी तक का प्रचलन यही रहा है. भौतिकवाद और आदर्शवाद ने मनुष्य को एक प्रकार का जीव ही कहा है.
ज्ञानवाही तंत्र का सार्थक स्वरूप है - न्याय, धर्म, सत्य को प्रमाणित करना.
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित - आन्वरी आश्रम, १९९९
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