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Monday, August 11, 2008

"अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन" का मतलब

प्रश्न: अपने presentation को "अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन" नाम देने के मूल में आपका क्या आशय रहा?

उत्तर: इसके पहले दो तरह के चिंतन आए - पहला, रहस्य मूलक ईश्वर केंद्रित चिंतन; दूसरा, भौतिकवाद या अस्थिरता अनिश्चयता मूलक वस्तु केंद्रित चिंतन। ईश्वर केंद्रित चिंतन रहस्य से आरम्भ होता है, और रहस्य में ही अंत होता है - इसलिए उसको विशेषण दिया - "रहस्य मूलक"। रहस्य से कोई समाधान मिलता नहीं है। मनुष्य में कल्पनाशीलता होने से रहस्य को लेकर अनेक प्रकार की चीजें लिख दी गयी। भौतिकवाद ने सिद्धांत रूप में अस्थिरता-अनिश्चयता को प्रतिपादित किया है।

अब यह जो मुझसे प्रकट हुआ इसे भी तो कोई नाम देना था। मैंने अस्तित्व में ही सब कुछ देखा था। और मैंने मानव की हैसियत से ही देखा था। अस्तित्व मूल में है, और मानव देखने/समझने वाला है - इसीलिये "अस्तित्व मूलक मानव केंद्रित चिंतन" नाम दिया।

प्रश्न: इस को "मध्यस्थ दर्शन" आपने नाम क्यों दिया?

उत्तर: इसमें मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ बल, मध्यस्थ शक्ति, और मध्यस्थ क्रिया का वर्णन है - इस आधार पर इसको मध्यस्थ-दर्शन नाम दिया।

प्रकृति में तीन तरह की क्रियाएं गवाहित हैं - सम (बनना, या बढ़ना) , विषम (गिरना, घटना), और मध्यस्थ (बने रहना)। जैसे - पेड़ बढ़ता है, बने रहता है, और एक दिन मर जाता है। बकरी का बच्चा पैदा होता है, जीता है, और एक दिन मर जाता है। बने रहने की परम्परा होती है।

परम्परा के रूप में हरेक वस्तु सदा-सदा रहने के लिए है - इसको पहचानने की आवश्यकता है। मध्यस्थ के आधार पर सम और विषम का भी अध्ययन किया जा सकता है।

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)

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