प्रश्न: हम जो अनुभवगामी विधि से अध्ययन कर रहे हैं, क्या हमको वही समझ में आएगा जो आपको आया है?
उत्तर: मेरे सम्मुख जो प्रकृति प्रस्तुत हुई थी, वही आपके लिए अध्ययन पूर्वक प्राप्त होने वाले साक्षात्कार में होता है। मैं जो आपके सम्मुख प्रस्तुत हो रहा हूँ, मैं एक प्रकृति का अंश ही तो हूँ। आप भी प्रकृति का, प्रकृति से ही अध्ययन कर रहे हैं। साधना-समाधि-संयम पूर्वक मेरी अर्हता बन गयी - जिससे प्रकृति मेरे सम्मुख अध्ययन के लिए प्रस्तुत हो गयी। अब आप के सामने भी वही अध्ययन करने की सम्भावना है।
प्रश्न: अनुभवगामी विधि में अध्ययन विधि क्या है?
उत्तर: परिभाषा से आप शब्द के अर्थ को अपनी कल्पना में लाते हैं। परिभाषा आपकी कल्पनाशीलता के लिए रास्ता है । उस कल्पना के आधार पर अस्तित्व में वस्तु को आप पहचानने जाते हैं। आपकी कल्पनाशीलता वस्तु को छू सकता है। वस्तु को जीवन ही समझता है। जीवन समझता है - तो वह साक्षात्कार ही होता है। अस्तित्व में वस्तु को पहचानने पर वस्तु साक्षात्कार हुआ। वस्तु के रूप में वस्तु साक्षात्कार होता है - शब्द के रूप में नहीं होता है। ऐसे साक्षात्कार होने पर वह बोध और संकल्प में जा कर अनुभव मूलक विधि से पुनः प्रमाण बोध में आ जाता है। प्रमाण-बोध में आ जाने से निश्चयन हो जाता है - कि यह वस्तु ऐसे ही है।
अध्ययन की शुरुआत सह-अस्तित्व से करना सही है। सह-अस्तित्व में ही जीवन है, रासायनिक भौतिक क्रिया है। सह-अस्तित्व साक्षात्कार होना, फ़िर उसमें जीवन साक्षात्कार होना, जीवन साक्षात्कार होने के बाद अजीर्ण और भूखे परमाणु साक्षात्कार होना। साक्षात्कार तक ही आप की लगन की ज़रूरत है। साक्षात्कार होने के बाद बोध और अनुभव में टाइम नहीं लगता। वह तत्काल होता है। देरी उसके के लिए तैय्यारी में लगता है।
अर्हता के बिना कोई चीज प्रमाणित नहीं होता। सत्य को समझने की अर्हता, और सत्य को प्रमाणित करने की अर्हता अध्ययन से ही आती है। सभी वस्तुओं को अस्तित्व में पहचानना अध्ययन है - जो एक क्रमिक विधि है, जिसमें समय लगता है । अध्ययन साक्षात्कार तक ले जाता है। साक्षात्कार हो जाना अध्ययन होने का प्रमाण है।
समझने के सूत्र हैं - नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, और सत्य। व्याख्या रूप में चारों अवस्थाएं हैं - जो प्राकृतिक गवाहियाँ हैं। चारों अवस्थाओं का रूप, गुण, स्वभाव और धर्म है - यह समझने की वस्तु है। प्राकृतिक गवाहियों का ही अध्ययन है। अस्तित्व क्यों है, कैसा है - यह आपको समझ में आना है। सह-अस्तित्व में व्यापक वस्तु भी है, एक-एक वस्तु भी है। व्यापक वस्तु का वैभव है - पारगामियता, पारदर्शिता, और व्यापकता। इन तीन स्वरुप में जब व्यापक समझ में आता है - तब इसी में समाई हुई अनंत प्रकृति हमको साक्षात्कार हो जाता है।
मुझको जैसे अध्ययन हुआ - आपको भी होगा।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (जनवरी २००७, अमरकंटक)
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