श्रुति-स्मृति का मतलब है - भाषा को सुनना और बोल कर सुनाना। यहाँ तक मनुष्य-जाति पहुँच गया था। अध्ययन, वास्तविकताओं को लेकर पारंगत होना, और प्रमाण इसके आगे की कडियाँ हैं - जिनको मध्यस्थ-दर्शन द्वारा जोड़ा गया है। भाषा को सुनना और उसको बोल कर सुनाना अध्ययन के लिए आवश्यक है। भाषा आदर्शवाद की देन है। इससे पढ़ना, पढाना, बोलना, सुनना यह सब अच्छे से आदमी आज कर सकता है। लेकिन इतने भर से आदमी का काम चला नहीं। जब तक अध्ययन, वास्तविकताओं में पारंगत होना, और प्रमाणित होने की कडियाँ जुड़ती नहीं हैं - तब तक आदमी का काम चलता नहीं है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००७, अमरकंटक)
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