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Thursday, June 19, 2008

व्यवस्था का आधार परिवार है.



मध्यस्थ-दर्शन से मानवीय-व्यवस्था का आधार परिवार है, यही निकलता है।

इससे पहले व्यवस्था का आधार "राजा" बताया था। जो असफल हुआ। राजा लोगों के तौर-तरीकों को लोग पहचान गए, और उनको नकार दिए।

उसके बाद व्यवस्था का आधार "सभा" बताया। सभा में सब चोर हो गए! वह भी असफल हो चुका है।

व्यवस्था का मूल बीज परिवार ही है। समाधान-समृद्धि का प्रमाण - व्यवस्था का पहला बीज रूप परिवार ही है। इस जगह में मार्क्स नहीं पहुँचा, इस जगह में मनु (मनु धर्म-शास्त्र) नहीं पहुँचा, इस जगह में ऐडम स्मिथ नहीं पहुँचा। इस जगह में आज तक कोई नहीं पहुँचा।

परिवार देश की व्यवस्था का आधार हो सकता है, यह अभी तक किसी देश में नहीं है।

मैं एक अकेला आदमी, नगण्य आदमी, इसको पहचानने का संयोग मिला - उसको मैं उत्सव मानू कि नहीं मानू?

व्यवस्था का आधार परिवार है, न कि सभा, न कि व्यक्ति। अब मैं यह सोचता हूँ, (१) एक ग्राम में स्वराज्य व्यवस्था प्रमाणित करना, (२) एक कक्षा-१ से १२ तक एक विद्यालय प्रमाणित करना (इस समझ पर)। ये दो रिक्त स्थालियाँ हैं अभी। इन दो जगह प्रमाणित होने के बाद यह दावानल है। इस बात की आवश्यकता है - यह ध्वनी के रूप में पहुँच रहा है। आंशिक रूप में यह उत्साह के रूप में भी दिखता है। involvement की बात उसकी आन्शिकता में दिखता है।

शहरी जिन्दगी में शिक्षा में प्रमाणित होना निकटवर्ती है।
ग्रामीण जिंदगी में व्यवस्था में प्रमाणित होना निकटवर्ती है।

इसकी आवश्यकता तो आ गयी है। इस को आप कैसे अपनाओगे यह आप के ऊपर निर्भर है। तकनीकी तो आप के पास है!

- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)

2 comments:

Unknown said...

मैं भी इस से सहमत हूँ कि सामजिक व्यवस्था का आधार परिवार है. आज व्यक्ति स्वयं को इस व्यवस्था का आधार मानता है. परिवार टूट रहे हैं. इस का असर समाज पर हो रहा है. लालच बढ़ रहा है. हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही है. यह सब समाज के लिए ठीक नहीं है. यदि हम अपने समाज को खंडित होने से बचाना चाहते हैं तब हमें अपना सोच बदलना होगा और यह मान कर चलना होगा कि सामजिक व्यवस्था का आधार परिवार है.

Unknown said...

मैं भी इस से सहमत हूँ कि सामजिक व्यवस्था का आधार परिवार है. आज व्यक्ति स्वयं को इस व्यवस्था का आधार मानता है. परिवार टूट रहे हैं. इस का असर समाज पर हो रहा है. लालच बढ़ रहा है. हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ रही है. यह सब समाज के लिए ठीक नहीं है. यदि हम अपने समाज को खंडित होने से बचाना चाहते हैं तब हमें अपना सोच बदलना होगा और यह मान कर चलना होगा कि सामजिक व्यवस्था का आधार परिवार है.