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Friday, June 13, 2008

जीवन में अतृप्ति को आवेशित क्रियाकलाप से भर नहीं सकते.

जीवन में अनुभव से पहले अतृप्ति (अधूरापन या खोखलापन) रहता है। इस अतृप्ति के रहते हमारी सतही-मानसिकता (४.५ क्रिया) में जीते हुए भी जीवन आवेशित क्रिया-कलाप को पूरा स्वीकारता नहीं है। जैसे सुविधा-संग्रह में ग्रस्त लाभोन्माद में चलते चलते किसी जगह पर पहुँच जाने के बाद "यह सही है" - ऐसा हम मान नहीं सकते। बाकी दोनों आवेशों के साथ (कामोन्माद और भोगोन्माद) के साथ भी ऐसा ही है। यह इसलिए है - क्योंकि जीवन में निहित अतृप्ति को इन उन्मादों से किसी तरह भी भरा नहीं जा सकता। कुछ दूर चलने पर खालीपन फ़िर कचोटने लगता है। यह सभी के साथ है। यही जीवन में सच्चाई के लिए शोध का स्त्रोत है। इसी खालीपन के सहारे हम अध्ययन पूर्वक उन्मादों के चक्र-व्यूहों से बुचक सकते हैं। इस खालीपन को भरने का एक मात्र उपाय सहअस्तित्व में अध्ययन ही है।

- श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)

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