तर्क से हम कुंठित होने की जगह में पहुँचते हैं। हर मनुष्य में जो सुखी होने की प्यास है - उसको पहचान लेने पर उसको पूरा करने के लिए जो अध्ययन करना है, वह हम करने में लगते हैं। सकारात्मक भाग को लेकर प्यास हर व्यक्ति में बना हुआ है।
वैदिक विचार में निषेध का प्रयोग करके कहा गया की उससे हर व्यक्ति में विधि का उदय होगा। अर्थात - यह सच्चाई नहीं है, यह भी सच्चाई नहीं है - इस तरीके से वैदिक विचार का presentation रहा। इस तरह यह सोचा गया था की ऐसे करते करते एक ऐसी जगह में पहुँच जायेंगे, जिसमें हम केवल "जो सच्चाई है" - उस तक पहुँच जायेंगे। वह प्रमाणित नहीं हो पाया।
मध्यस्थ-दर्शन का approach है - "जो है" उसका अध्ययन करना। अस्तित्व ही है - उसी का अध्ययन करना। सम्पूर्ण अस्तित्व क्यों है, और कैसा है - यह स्पष्ट होना। अस्तित्व में ही अविभाज्य मानव क्यों है, और कैसा है? इसके अलावा कुछ बचता नहीं है। इसके बाद अध्ययन का अध्याय ही ख़त्म।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित - जनवरी २००७ में
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