दृष्टा समझ आने से दृष्टि की बात स्पष्ट होती है। जीवन ही दृष्टा है।
जीवन ४.५ क्रिया में कितनी बातों का दृष्टा है, और १० क्रिया में कितनी बातों का दृष्टा है - यह मध्यस्थ-दर्शन में स्पष्ट किया है। ४.५ क्रिया द्वारा जीवन संवेदनाओं का दृष्टा है। १० क्रिया के साथ संज्ञानीयता पूर्वक सह-अस्तित्व में दृष्टा है। केवल जब शरीर-ज्ञान के साथ जीते हैं - तो ४.५ क्रिया में ही जीते हैं। उसका अन्तिम लक्ष्य है संवेदना। शब्द, स्पर्श, रस, गंध, रूप इन्द्रियों को राजी रखना।
जीवन-ज्ञान, सह-अस्तित्व दर्शन ज्ञान, और मानवीयता पूर्ण आचरण-ज्ञान के बिना संज्ञानीयता सिद्ध ही नहीं होगा।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
स्त्रोत: मध्यस्थ-दर्शन
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