अनुभव मूलक विधि बात-चीत करने के तीन ही column हैं।
(१) प्रस्तावना
(२) समीक्षा
(३) निर्णय
प्रस्तावना का मतलब है - अपनी बात को रखना। प्रस्तावना के रूप में विद्या की किसी भी बात को रखा जाए। उसको जांचने का अधिकार सामने वाले व्यक्ति के पास है। उसी तरह हर सुनी हुई बात को प्रस्तावना के रूप में ही लिया जाए, उसको दूसरे की अवहेलना/विरोध करने के लिए नहीं लिया जाए।
शुभ जो घटित नहीं हुआ - अपेक्षा ही रह गया, उसकी समीक्षा होती है। जो प्रमाणित हो गया उसका ही मूल्यांकन होता है। यदि जिसकी समीक्षा कर रहे हैं, उससे भविष्य में अपेक्षा नहीं रखते, तो वह विरोध ही हो जाता है।
तीसरा बात-चीत का कालम है - निर्णय। निर्णय होता है - कार्य-योजना के अर्थ में। इसका मतलब हम किस तरह अपनी समझदारी को प्रमाणित करेंगे, इस बात का निर्णय होता है।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
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