शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गंध इन्द्रियों का जो ज्ञान है - वह किसको होता है? शरीर को होता है, या शरीर के अलावा और किसी को होता है? विगत में ज्ञान, ज्ञाता, और ज्ञेय ब्रह्म को ही बताया। साथ ही ब्रह्म को अव्यक्त और अनिर्वचनीय बता दिया। अब ज्ञान जो वचनीय भी हो, हम समझ भी सकें, समझा भी सकें - ऐसे हमको चलना है। ज्ञान का मतलब ही यही होता है - जो मैं समझ सकता हूँ, और जो मैं समझा पाता हूँ।
यहाँ एक समीक्षा हो सकती है - विगत ने हमको क्या दिया? विगत से आयी आदर्शवाद और भौतिकवाद (बनाम विज्ञान) ने हमको क्या दिया? आदर्शवाद ने हमको शब्द-ज्ञान दिया - जिसके लिए उसका धन्यवाद है। भौतिकवाद (विज्ञान) ने सभी तरह के time और space के नाप-तौल की विधियां दी, जिससे कार्य (work) को पहचाना गया - जिसके लिए उसका धन्यवाद है। अब बाकी और क्या ज्ञान की ज़रूरत है? धरती बीमार हो गयी है - अब आदर्शवाद और भौतिकवाद से इसका कोई रास्ता निकल नहीं रहा है, इसलिए हमको इनके आगे समझने की ज़रूरत है। यही reference point है - मध्यस्थ-दर्शन का अध्ययन शुरू करने के लिए। "आवश्यकता" के अर्थ में एक reference रखना पड़ेगा। यदि आवश्यकता ही नहीं है - तो हम अध्ययन क्यों करेंगे? इस reference को भूलना नहीं। यदि reference को नहीं रखते तो time और space का निर्णय कैसे करोगे? इस reference के आधार पर पता चलता है, हमने इतने time और space में क्या किया। उसी के आधार पर हम कार्य (work) को तय करते हैं।
कार्य की पहचान भी ज्ञान ही है - क्रिया-ज्ञान के रूप में। ज्ञान और क्रिया में क्या अन्तर है? भौतिक संसार में कार्य-ऊर्जा होती है - तभी तो भौतिक संसार क्रियाशील है। यह मूल ऊर्जा व्यापक ही है। मनुष्य में कार्य-ज्ञान ही कार्य-ऊर्जा है। मनुष्य में "कार्य-ज्ञान" होता है - यह बात परम्परा में आ चुकी है। इसी के आधार पर हम कार्य के लिए प्रशिक्षण लेते हैं। अब कार्य-ज्ञान के मूल में जो प्रवृत्ति है - उसे हम "ज्ञान" कह रहे हैं। यह वही मूल ऊर्जा है। यह वही साम्य ऊर्जा है। मानव में यह ऊर्जा ज्ञान के स्वरुप में जुड़ा है। "होने" के आधार पर साम्य-ऊर्जा, "रहने" के आधार पर कार्य-ऊर्जा।
इस बात को अच्छे से डूब के समझ लो! यह point यदि miss होता है, तो हम पुनः पटरी से उतर जायेंगे।
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (अगस्त २००६)
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