"न्याय पूर्ण विचार में निष्ठा एवं उसकी निरंतरता ही धैर्य है. यह घटित होने के लिए सर्वप्रथम मानव का अपने स्वत्व स्वरूप अर्थात मानवीयता के प्रति जागृत होना अनिवार्य है. हर मानव धैर्य पूर्ण होना ही चाहता है, न्याय का याचक है ही, न्याय प्रदायी क्षमता से संपन्न होना ही चाहता है. किन्तु इसके लिए स्वयं में विश्वास, श्रेष्ठता के प्रति सम्मान रूपी निश्चयन आवश्यक है." - श्री ए नागराज
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