"किसी शिक्षा संस्कार व्यवस्था के बिना भी कल्पना के रूप में अभिभावकों में संतान के प्रति अभ्युदय की कामना स्वीकृत रहती है. इस तथ्य से स्पष्ट है कि अस्तित्व में अभ्युदय सूत्र और उसकी व्याख्या है ही, उसे मानव को नियति के रूप में स्वीकारना है. इस तथ्य को जानने के फलस्वरूप अस्तित्व में मानव जाति का अभ्युदय के लिए प्रायोजित होना, तत्पर होना ही मानव कुल का प्रयोजन है. ऐसा स्वीकृत होने पर ही मानव अध्ययन के लिए निष्ठा पूर्वक तत्पर होता है." - श्री ए नागराज
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