"विकास के अर्थ में चरित्र, जीवन के अर्थ में मूल्य ध्रुवीकृत है. यही सत्यता सहज मूल्याँकन व्यवस्था है. आचरण ही मानवीय चरित्र को स्पष्ट करता है. आचरण ही चरित्र का अनुसरण स्थापन व समृद्धि का प्रकाशन है. आचरण में, से, के लिए प्रत्येक इकाई बाध्य है. प्रत्येक आचरण में स्व-संतुष्टि, तृप्ति व आनंद की अभिलाषा व कल्पना समायी रहती है." - श्री ए नागराज
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