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Tuesday, July 19, 2016

वैदिक विचार पर प्रश्न चिन्ह




आदर्शवाद के अनुसार मानव का अध्ययन नहीं है, न भौतिकवाद के अनुसार है.  भौतिकवाद ने मानव के स्वरूप की व्याख्या कामोन्मादी मनोविज्ञान, भोगोन्मादी समाजशास्त्र और लाभोन्मादी अर्थशास्त्र के रूप में किया।  आदर्शवाद ने मानव के कल्याण को रहस्य मूलक विधि से मोक्ष और स्वर्ग में बता दिया।  इसके बाद किससे बात करना शेष है, आप ही बताओ।  यह निष्कर्ष मैं २४ वर्ष की आयु में निकाल चुका था.  ऐसे में मैं किससे बात करता?

उस समय रमण महृषि के शिष्य काव्यकंठ गणपति शास्त्री मेरे पिताजी के काफी निकटवर्ती थे.  इस आधार पर हमारे परिवार में रमण महर्षि का बहुत सम्मान करते थे.  इसीलिए मैंने रमण महृषि से यह पूछा नहीं कि आपको समाधि हुआ है या नहीं?  जबकि मेरे पास यह पूछने का पूरा अधिकार था.   यह नहीं पूछना मेरे लिए वरदान हो गया.  यदि मेरा आस्था टूटता तो मैं यहाँ साधना करने के लिए नहीं आ पाता।  शास्त्रों में समाधि के लिए कहा है, और महापुरुषों का उसमें सहमति है -  इतनी आस्था को ले करके अब जो परिणाम होगा, सो होगा, यह सोच के मैं यहाँ आया.  ज्यादा से  ज्यादा क्या होगा - शरीर पात होगा!  दूसरा शरीर मिल जाएगा, क्या आपत्ति है?  इस दृढ़ निश्चय से मेरे जीवन में एक बहुत भारी उद्देश्य बन गया, उसमें निष्ठा बन गयी, उसके अनुसार साधना करना भी बन गया, और साधना का फल भी मिल गया.  साधना का फल मानव जाति के लिए उपकार का आधार बन गया.  यहाँ साधना के लिए आने से पहले मैंने थोड़े ही सोचा था कि मैं मानव जाति के लिए संविधान लिखूंगा या मुझे कोई दर्शन मिलेगा!  आप ही बताओ - मुझको उस समय कहाँ पता था?

जब वेद विचार ही प्रश्न चिन्ह में आ गया - जिसमे इतने बड़े भारी समर्पण के साथ लोग लगे हैं, उसके बाद क्या बचता है?  वेद तीन खण्ड में है - कर्म, उपासना और ज्ञान।  वेद का सार बात है - उपनिषद।  १०८ उपनिषद हैं।  उनका सार बात है - वेदान्त।  वेदान्त जब प्रश्न चिन्ह में आ गया, तीनों वेद जब प्रश्न चिन्ह में आ गया - तो फिर क्या बात करना है?  प्रश्न बना - सत्य से मिथ्या कैसे पैदा हो गया?  मैंने अपने परिवार जनों से पूछा - "बकरी से बकरी पैदा होता है, नीम के बीज से नीम ही उगता है.  ये कैसा ब्रह्म है, जो मिथ्या को पैदा किया?  मिले तो उसको जूता मारा जाए!"  मुझसे ज्यादा बागी कोई होगा?  ऐसे भद्दे तरीके से उस समय मेरे बोलने पर मेरी हत्या भी हो सकती थी.  मेरी हत्या इसी लिए नहीं हुई - मेरे मामा के कारण!  मेरे मामा ऐसे प्रचण्ड विद्वान थे, जिनके सामने सभी नतमस्तक थे.  उन्हीं से मैंने वेदान्त पढ़ा था.  वेदान्त को पूरा पढ़ने के बाद मेरे परीक्षण में उन्होंने कहा - "तुम वेदांत को ठीक समझे हो".  मैंने उनसे तीन बार यह बुलवाया।  फिर मैंने उनसे पूछा - तुम्हारा गुरु दक्षिणा क्या देना है.  उन्होंने कहा - तुम समझ गए, यही मेरा दक्षिणा है.  ऐसे उऋण होने के बाद मैंने उनसे अपनी बात बताने की अनुमति माँगी।  उन्होंने अनुमति दी तो मैंने उनको कहा - "ये जो तुम्हारा वेदान्त है - निरर्थक है, जूते के नीचे रखने के योग्य भी नहीं है!  सत्यम् ज्ञानम् अनन्तम् ब्रह्मम् से उत्पन्न जीव जगत मिथ्या कैसे है?  - तुम बताओगे?"  मेरे ऐसे वचन सुन के वे रोने लगे.  ऐसे भट्टी से मैं निकल के आया हूँ.  सेंतमेंत का मंथन नहीं है ये!  कुछ चुका कर ही यह मंथन हुआ है.  कोई मुझे पैसा चाहिए था, कोई ख्याति चाहिए था, कोई सम्मान चाहिए था - ऐसा कुछ भी आरोप नहीं लगा सकते।  स्वयं को चुकाया है, तब यह मंथन हुआ है.

उस समय यदि भारत के संविधान में राष्ट्रीय चरित्र का स्वरूप उद्घाटित हो जाता तो मैं यहाँ साधना करने नहीं आता!  राष्ट्र के हित में मैं कुछ काम करता।  मेरा माद्दा ऐसा ही रहा था.  पर जब राष्ट्र का चरित्र ही स्पष्ट न हो तो किस के लिए काम करें?  इसलिए उस प्रसंग को तिलांजलि दे दिया।  चींटी भी जी ही लेता है, हाथी भी जी ही लेता है - मैं भी जी लूँगा कैसे भी.  यहाँ अमरकंटक आ करके पत्ते आदि को खाके साधना करने लगा.  यहाँ के लोग मुझे ऐसे जीने नहीं दिए.  तो कृषि करके अपनी रोटी की व्यवस्था कर दिया, कुछ बचा तो कन्या-भोजन करा दिया।  ऐसे मैं चला हूँ.

-दिसंबर २००८, अमरकंटक 

3 comments:

Unknown said...

Sir,

Please see the following link which was freshly uploaded of Sri Nagaraj..

Brahma Satyam Jaganmithya means Jagat is not existent in either past or present or future. Whatever exists is Brahman alone. There is no 'mithya ko paida karna' question. You, I, everything,everyone is Bhrahman and nothing but Brahman alone. So I have great doubt about this stand taken by Sri Nagaraj, with all due respect.

Differing in opinion is not at all wrong. Rather we all need various viewpoints but here I somehow feel there is a misunderstanding to the effect that Jagat is a valid entity separate from Brahman. It's not truth according to vedanta.

https://youtu.be/IWybHLHS4IY

Will love if you give a reply for this..

Rakesh Gupta said...

Dear Sir,

Thanks for your query.

Nagraj ji here is postulating - "Brahman Satya, Jagat Shashvat". Jagat is recognized to be not identical with Brahman, but a reality which is inseparably saturated or 'samprikt' (dooba, bheega, ghira) in the reality of Brahman. His proposition is of Coexistence of Brahman and Jagat - as against Brahman being the only reality. It is based on the Coexistence principle that he explains the successive occurrence (prakatan) and harmony (vyavastha) in existence. That explanation and the vision of universal order of humaneness that he presents is not possible or derivable from the Vedantic view point that considers each and every reality to be Brahman. Here all realities are understood to be a manifestation of coexistence of Brahman and Jagat (Matter).

My effort here is to share the dialog I had with him in my 12 years association with him. He is categorical in saying that Madhyasth Darshan is not a continuation of Vedantic thought, instead it has been presented as its alternative (vikalp).

There is a limit to what could be discussed over electronic media... perhaps, we could discuss in person some time. Or you could take it up with any one of the prabodhaks of jeevan vidya.

Regards,
Rakesh.

Unknown said...

Dear Sri Rakesh ji,

Thank you very much for taking time and explaining this out in some detail way here in nice and precise words. I have been introduced and interested in this subject through the Human Values and Professional Ethics text book for B Tech students prepared based on Jivan Vidya, from January this year. I will try to spend more time and verify this subject. Because of my vedantic affiliations I got this question, but I am willing to find out more patiently about this proposition. Vedanta loves to learn.

I appreciate your uploading videos of Sri Nagaraj ji, I am one of your subscribers, and please upload all possible videos available.

Regards,
Uddhav