तो इस ढंग से भ्रम और जागृति की दूरी कितना है आपको पता लग गया. जागृति होती है - अस्तित्व को सहअस्तित्व स्वरूप में समझने से, सहअस्तित्व में विकास क्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति को सटीक समझने से.
प्रश्न: व्यापक वस्तु में तदाकार होने के लिए क्या करें?
उत्तर- व्यापक वस्तु की महिमा समझ में आने पर ही उसमें तदाकार होना बनता है. "व्यापक" शब्द सुनने मात्र से तदाकार नहीं होगा। उसका महिमा ज्ञान होना आवश्यक है. क्या महिमा? साम्य ऊर्जा की व्यापकता, पारगामीयिता और पारदर्शीयता स्पष्ट होना।
स्वयं में ज्ञान और ऊर्जा संपन्नता के आधार पर व्यापक वस्तु का पारगामी होना समझ में आता है. हर वस्तु ऊर्जा सम्पन्न है, इसलिए ऊर्जा का पारगामी होना समझ में आता है. इसको अपने में ही ज्ञान करना पड़ता है. विवेचना करना पड़ेगा, उसको अनुभव करना पड़ेगा। यहीं से अनुभव शुरू होता है.
"सत्ता में सम्पृक्तता" के आधार को स्वीकारने के बाद अभी जो शरीर को जीवन मान कर जीते थे, उससे हम एक कदम आगे हो गए. उसके बाद आगे अध्ययन क्रम में ये चारों भाग आ गए - विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति।
इस तरह इन चारों अवस्थाओं के संबंध में हम निर्भ्रम हो गए. जागृति के बारे में निर्भ्रम हो गए. इसका नाम है ज्ञान संपन्नता। ऐसे ज्ञान संपन्न होने के बाद हम साम्य ऊर्जा (व्यापक वस्तु) में तदाकार होते हैं.
पहले ऊर्जा में तदाकार होगा, ऐसा होगा नहीं है. विकास-क्रम, विकास, जागृति-क्रम और जागृति का समझ अध्ययन से आता है. आकर के इसमें हम यदि जागृति को प्रमाणित करना शुरू किए तो "ज्ञान व्यापक है" ये पता लगता है. तब मानव को अनुभव होता है कि ऊर्जा में, ज्ञान में हम तदाकार हैं ही! मानव को साम्य ऊर्जा ज्ञान स्वरूप में प्राप्त है. साम्य ऊर्जा में ही सब कुछ है, ज्ञान में ही सब कुछ है. मानव को स्पष्ट होता है कि उसका सब कुछ ज्ञान के अंतर्गत है.
अध्ययन पूर्वक तीनों अवस्थाओं का दृष्टा होना, और जागृति में तद्रूप होना।
ज्ञान में तदाकार हो गए तो फलस्वरूप ज्ञान के बारे में सोचा, ज्ञान व्यापक है और ऊर्जा भी व्यापक है. इसलिए ऊर्जा ही ज्ञान रूप में प्राप्त है. "ज्ञान व्यापक है" ये समझ में आया. "ऊर्जा व्यापक है" ये समझ में आया.
ये दोनों एक ही वस्तु है या अलग अलग है, इसका विवेचना होती है. विवेचना होकर निष्कर्ष निकलता है - व्यापक वस्तु ही मानव को ज्ञान रूप में प्राप्त है.
प्रश्न- यह विवेचना जीवन के किस स्तर पर होती है? विवेचना क्या बुद्धि की क्रिया है?
उत्तर- अनुभव के अनुरूप सोच-विचार करके निर्णय करना = विवेचना। अनुभव के बाद बुद्धि, चित्त, वृत्ति ये तीनों के योग में होता है विवेचना। अनुभव के बाद होती है विवेचना। यही विवेक है.
तीन अवस्थाओं का दृष्टा होना अध्ययन से आता है. तदाकार विधि से पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था क्या स्वरूप में है उसका हम दृष्टा हो जाते हैं. तदाकार का मतलब उनमें जो क्रिया हो रही है उसका ज्ञाता हो जाना।
उनके रूप, गुण, स्वभाव और धर्म के साथ में अपने मन को लगाने पर उनका दृष्टा बन जाते हैं - उसके बाद आता है अनुभव। अनुभव के साथ जागृति। जागृति में जीवन के साथ और ज्ञान के साथ तद्रूप होने वाला बात आ गया.
प्रश्न- जीवन और ज्ञान के साथ तद्रूप होने का मतलब क्या हुआ?
उत्तर- जीवन के साथ जो ज्ञान संबंध रखता है उसके साथ तद्रूप होने वाली बात आ गई. ज्ञान जो है, वह सर्वत्र फैला हुआ है - इसका हम तद्रूप अवस्था में पाते हैं. ज्ञान जो है, वह एक जगह में नहीं है. अभी मानव जो ज्ञान का भाग-विभाग करना चाह रहे हैं, वह बर्बादी का काम है.
सार रूप में - हम चारों अवस्थाओं का तदाकार विधि से दृष्टा हुए, जिसके फलन में अनुभव की जगह में आ गए.
शरीर के दृष्टा हो गए और अनुभव में जीवन आ गया. अनुभव पूर्वक ज्ञान जीवन के साथ जुड़ गया. ज्ञान को विवेचना किए तो पता चला ज्ञान व्यापक है.
प्रश्न- ज्ञान जीवन के साथ जुड़ गया - इसका मतलब क्या हुआ?
उत्तर- जीवन ज्ञान सम्पन्न हो गया. जीवन ज्ञान होना ही ज्ञान है. अस्तित्व दर्शन ज्ञान लिखा है. अस्तित्व को दृश्य रूप में हम प्रतिपादित किया है. जीवन को जीवन ही समझता है इसका नाम है ज्ञान। सहअस्तित्व और जीवन ज्ञान के फलस्वरूप में मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान। इतना ही तो काम है.
- दिसंबर २००८, अमरकंटक
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