"मैं इस बात का सत्यापन करता हूँ कि संवेदनाओं के संयमित होने से पहले धरती पर एक भी व्यक्ति "अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था" को सोच नहीं पायेगा। यदि यह बात गले से उतरता है तो संज्ञानीयता में पारंगत होने की इच्छा स्वयं में बनता है।"
- श्री नागराज का उद्बोधन (अक्टूबर 2006, कानपूर)
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