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Thursday, September 27, 2012

अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था




"मैं इस बात का सत्यापन करता हूँ कि संवेदनाओं के संयमित होने से पहले धरती पर एक भी व्यक्ति "अखंड समाज - सार्वभौम व्यवस्था" को सोच नहीं पायेगा।  यदि यह बात गले से उतरता है तो संज्ञानीयता में पारंगत होने की इच्छा स्वयं में बनता है।"

- श्री  नागराज का उद्बोधन  (अक्टूबर 2006, कानपूर)

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