प्रश्न: “सहज” शब्द से क्या आशय है?
उत्तर: सहज से आशय है – मानव को जिसे बनाना नहीं है. सभी व्यवस्था सहज है. नियम सहज है. जीवन सहज है. शरीर सहज है. क्या सहज है, यह समझे बिना मानव ने अपने को “बनाने वाला” मान कर ही तो सब कुछ को बर्बाद किया है. मानव ही सारी कृत्रिमता का आधार है, और कोई भी नहीं है. मानव सहजता का आधार अभी तक बना नहीं. मानव को सहज को पहचानने की आवश्यकता है. सहजता विधि से मानव के बने रहने की व्यवस्था है. कृत्रिमता विधि से कहीं न कहीं कुंठित होता है. सहज की ही निरंतरता होती है. अक्षुण्णता की अपेक्षा मानव सदा से ही रखे हुए है. उस अपेक्षा के अनुसार काम नहीं किया तो क्या वह झूठ नहीं हो गया?
प्रश्न: आदमी घर बनाता है, सड़क बनाता है, यातायात के साधन बनाता है – ये सब पहले से तो उपलब्ध नहीं हैं. उनको वह बनाए या नहीं?
उत्तर: आदमी इनको बनाए, पर नियम की समझ के साथ बनाए. सभी सुविधाओं को बनाने के लिए नियति विधि का अनुसरण किया जाए, न कि कृत्रिम विधि को. कृत्रिम विधि है – नियति विरोधी सिद्धांतों को अपनाना. प्रचलित विज्ञान कृत्रिम विधि है.
- श्री ए. नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल २००८, अमरकंटक)
1 comment:
अच्छा लेख
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