सुख, शान्ति, संतोष और आनंद चार स्थितियां हैं। अनुभव ही इन चारों स्थितियों का आधार है। अनुभव प्रणाली से यह होता है। मन वृत्ति में अनुभव किया - फलतः सुख। वृत्ति चित्त में अनुभव किया - फलतः शान्ति। चित्त बुद्धि में अनुभव किया - फलतः संतोष। बुद्धि आत्मा में अनुभव किया - फलतः आनंद। सुख, शान्ति, संतोष, आनंद को "जीवन मूल्य" कहा - क्योंकि जीवन में जीवन के अनुभव होने के क्रम में ये निकल गए।
आत्मा सह-अस्तित्व में जो अनुभव करता है, उसको "परमानंद" नाम दिया। सुख, शान्ति, संतोष, और आनंद परमानंद की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। परमानंद व्यक्त होता नहीं है, पर सुख, शान्ति, संतोष और आनंद व्यक्त होता है। इसमें से सुख समाधान से सम्बद्ध है। व्यवहार में समाधान प्रमाणित होता है। शान्ति समाधान-समृद्धि से सम्बद्ध है। संतोष समाधान-समृद्धि-अभय से सम्बद्ध है। आनंद दूसरे व्यक्ति को सत्य (सह-अस्तित्व) बोध कराने में व्यक्त होता है।
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल 2008, अमरकंटक)
आत्मा सह-अस्तित्व में जो अनुभव करता है, उसको "परमानंद" नाम दिया। सुख, शान्ति, संतोष, और आनंद परमानंद की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। परमानंद व्यक्त होता नहीं है, पर सुख, शान्ति, संतोष और आनंद व्यक्त होता है। इसमें से सुख समाधान से सम्बद्ध है। व्यवहार में समाधान प्रमाणित होता है। शान्ति समाधान-समृद्धि से सम्बद्ध है। संतोष समाधान-समृद्धि-अभय से सम्बद्ध है। आनंद दूसरे व्यक्ति को सत्य (सह-अस्तित्व) बोध कराने में व्यक्त होता है।
- श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (अप्रैल 2008, अमरकंटक)
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