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Tuesday, September 11, 2012

ज्ञान-दृष्टि


अन्तःकरण में इस बात की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए कि जीव-चेतना में जीते हुए मानव का सार्थक जीने का स्वरूप नहीं बनेगा. पहला मुद्दा यही है.  यह निष्कर्ष यदि निकलता है तो मध्यस्थ दर्शन के सन्दर्भ में मैंने जो कुछ भी लिख कर दिया है, बोल कर दिया है – वह सब सहायक है.  यदि यह निष्कर्ष आपमें नहीं निकलता है तो इसको आपने लिख दिया, पढ़ लिया, बोल दिया – उससे काम नहीं चलता.  अनुभव से ही काम चलेगा.  अनुभव ज्ञान दृष्टि से ही होगा.  ज्ञान-दृष्टि चक्षु-दृष्टि में आता नहीं है.  वस्तु के आकार, आयतन और घन में से घन आँखों में आता नहीं है.  चक्षु-दृष्टि के दृष्टि-पाट में आधा भाग ही आता है,  आधा भाग ओझिल ही रहता है.  ज्ञान-दृष्टि से “जीना” होता है, व्यवहार के लिए चक्षु का प्रयोग किया जाता है.  ज्ञान-दृष्टि का मानव ने अभी तक उपयोग किया नहीं है.  जितना भी मैंने मानवीयता के पक्ष में लिखा है वह आँखों में कहाँ आता है?  वह सब ज्ञान में गण्य होता है.  आदर्शवादी विधि में ज्ञान को व्यवहार में गण्य माना ही नहीं गया.  यदि ज्ञान व्यवहार में नहीं आता है तो उसका क्या मतलब है?  इसीलिये प्रमाणित होना बहुत आवश्यक है. 

अनुभव ज्ञान-दृष्टि से ही होगा.  अनुभव चर्म-दृष्टि से नहीं होगा.  अभी जीव-चेतना में हम जो कुछ भी कहते हैं, सोचते हैं, करते हैं – चर्म-दृष्टि से ही कहते हैं, सोचते हैं, करते हैं.  आँखों से सच्चाई दिखती नहीं है, जबकि जीव-चेतना में जीता हुआ मानव आँखों से दिखे हुए को सच्चाई मानता है.  आँखों से जितना दिखता है उसकी सीमा है, शरीर को पुष्ट रखना.  उसके अलावा कुछ नहीं!  जीव-चेतना में शरीर को पुष्ट बनाए रखने का क्या फायदा होगा?  केवल दूसरों को मारना-पीटना, धोखा-धडी करना.  वही करता है आदमी. 

प्रश्न: चर्म-दृष्टि सीमित है, यह मुझे स्पष्ट हो गया.  लेकिन ज्ञान-दृष्टि क्या है, यह मुझे स्पष्ट नहीं है.

उत्तर: भार एक ज्ञान है. आँखों से सामने रखा हुआ वस्तु आधा दिखता है, लेकिन यह पूरा है – यह ज्ञान दृष्टि से समझ में आता है. यहाँ से शुरुआत होता है.  इसी प्रकार हर मुद्दे में है. सह-अस्तित्व आँखों से दिखता नहीं है, पर समझ में आता है.  समाधान आँखों से दिखता नहीं है, पर समझ में आता है.  न्याय आँखों से दिखता नहीं है, पर समझ में आता है.  नियम, नियंत्रण, संतुलन आँखों से दिखता नहीं है, पर समझ में आता है.  ऐसा दृश्य मानव के सम्मुख प्रस्तुत है.  यह सब ज्ञान दृष्टि से ही समझ में आता है.  मानव को ही समझ में आता है.  जानवर को समझ में नहीं आएगा.  मानव में नर-नारी दोनों गण्य हैं. 

-    - श्री ए नागराज के साथ संवाद पर आधारित (सितम्बर २०१२, अमरकंटक)

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