मनुष्य ही सर्वशुभ की अपेक्षा करता है। अर्थशास्त्र का अध्ययन समाधान, समृद्धि, अभय और सह-अस्तित्व क्रम में है। समृद्धि का धारक-वाहक एक परिवार होता है। परंपरा में लाभ के बाद लाभ और भोग के बाद भोग का सम्मोहन बढ़ता आया है। इस सम्मोहन को समीक्षित करने योग्य जागृति को सुलभ करना ही इस आवर्तनशील अर्थचिंतन विचार और शास्त्र की महिमा है। आवर्तनशील अर्थव्यवस्था की क्रियाप्रणाली मनुष्य संबंधों में संतुलन के उपरान्त ही सार्थक हो पाता है। जहां-जहां तक सम्बन्ध में संतुलन नहीं है, वहां-वहां तक भ्रमवश लाभोन्माद छाया ही रहता है।
- आवर्तनशील अर्थशास्त्र
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